बुद्धकालीन भारतीय भूगोल | Buddhkaalin Bhartiya Bhoogol

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Buddhkaalin Bhartiya Bhoogol by डॉ. भरतसिंह उपाध्याय - Dr. Bharatsingh Upadhyay

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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- चौदह - खण्ड, पृष्ठ ५०१) में है और इसी प्रकार धोनसाख जातक (जातक, সিভহ तीसरी पृष्ठ १५७--पालि टैक्स्ट्‌ सोसायटी संस्करण ; 'हिन्दी अनुवाद, तृतोय खण्ड, पृष्ठ ३२०-३२१) में सुंसुमारगिरि का । परन्तु इन दोनों नामों का रतिलाल मेहता द्वारा प्रस्तुत सूची में उल्लेख नहीं हैं। इसी प्रकार असातरूप जातक (जातक, ` जिल्द पहली, पृथ्ठ ४०७--पालि टैक्सूट्‌ सोसायटी संस्करण; हिन्दी अनुवाद, प्रथम खण्ड, पृष्ठ ५७४) मे (कोक जनपद के) कुण्डिव नामक नगर तथ। उसके पास के कुण्डधान वन का उल्लेख है, जिसे श्री रतिलाल मेहता द्वारा प्रस्तुत सूची में कोई स्थान नहीं मिल सका है। अन्य कई महत्वपूर्ण स्थानों के नाम भी इसी प्रकार छूट गये हैं। बुद्धकालीन भूगोल के कंतिपथ अंशो से सम्बन्धित कुछ स्फूट अध्यधंन का भी हमें यहाँ उल्लेख कर देना चाहिए, जो निबन्धों या पुस्तिकाओं आदि के रूप मे विकीर्णं रूप से प्रकाशित हुआ है। विशेषत: पालि टैक्स्ट्‌ सोसायटी, रॉयल एशियाटिक सोसायटी, एशियाटिक सोसायटी आऑँब- बंगाल और बिहार एण्ड उड़ीसा रिसर्च सोसाथटी (बाद में बिहार रिसर्च सोसायटी ) के जनेलों में, आर्केलोजीकल सर्ने ऑव इण्डिया को वायिक रिपो्दों और मिमोयर्स में, ऑल इण्डिया ऑरियन्टल कासफंस के वाषिंक विवरणों में, इण्डियन एण्टिक्वेरी में, इण्डियन हिस्टोरिकल क्वार्टरली में और महाबोधि सभा के अंग्रेजी मासिक दि महाबोधि” में कुछ स्फुट विवेचन हमे कभी-कभो बुद्धकालीन भूगोल के कुछ पक्षों से सम्बन्धित भी मिल जाते है जिनमें कहीं-कहीं पालि स्रोतों का भी आश्रय लिया गया है । इसी प्रकार इम्पीरियल और डिस्ट्रिक्ट गज्जेटियरों का भी प्राचीन स्थानों की खोज में अपना महत्व है। इम्पीरियल गजेटियर भंव इण्डिया (नथा संस्करण, जिल्द दूसरी, पृष्ठ ७६-८७) में फ्लोट ने जो भौगोलिक टिप्पणी दी है, वह महत्वपूर्ण है। विभिन्न डिस्ट्रिक्ट गज़ेटियरों से भी आवश्यकतानुसार कुछ सहायता ली जा सकती है,- यद्यपि मेरठ, मुरादाबाद, बरेली, इटावा और एटा जैसे हमारी दृष्टि से कई महत्व पूर्णं जिलों के विवरगो में बुद्धकालीन भौगोलिक इतिहास के सम्बन्ध में प्रायः कुछ नहीं कहा गया है। हमें यह ध्यान में रखना ही चाहिये कि ये गज़ेटियरे काफी समय पूर्व लिखी गई सरकारी रिपोर्ट हैं और प्राचीन इतिहास या भूगोल का विवेचन करना उनका मुख्य प्रयोजन नहीं है।




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