महावीर का सर्वोदय तीर्थ | Mahavir Ka Sarwoday Tirth

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Mahavir Ka Sarwoday Tirth by जुगलकिशोर मुख्तार 'युगवीर' - Jugalakishor Mukhtar 'Yugavir'

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जैनोलॉजी में शोध करने के लिए आदर्श रूप से समर्पित एक महान व्यक्ति पं. जुगलकिशोर जैन मुख्तार “युगवीर” का जन्म सरसावा, जिला सहारनपुर (उत्तर प्रदेश) में हुआ था। पंडित जुगल किशोर जैन मुख्तार जी के पिता का नाम श्री नाथूमल जैन “चौधरी” और माता का नाम श्रीमती भुई देवी जैन था। पं जुगल किशोर जैन मुख्तार जी की दादी का नाम रामीबाई जी जैन व दादा का नाम सुंदरलाल जी जैन था ।
इनकी दो पुत्रिया थी । जिनका नाम सन्मति जैन और विद्यावती जैन था।

पंडित जुगलकिशोर जैन “मुख्तार” जी जैन(अग्रवाल) परिवार में पैदा हुए थे। इनका जन्म मंगसीर शुक्ला 11, संवत 1934 (16 दिसम्बर 1877) में हुआ था।
इनको प्रारंभिक शिक्षा उर्दू और फारस

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१४ महावीरका सर्वोदयतीथ [9 ^ क) छ हम आओ ५ ५ ০ পীর সর চে [ 1 यक है वह श्सवोदयतीथ' है । श्रातमाका उदय-उत्कषे अथवा विकास उसके ज्ञान-दशेन-सुखादिक स्वाभाविक गुणोक्रा ही उदय-उत्कपे अथवा विकास है। और गुणोंका वह उदय-उत्कर्ष अथवा विकास दोषोंके अस्त-अपकर्ष अथवा विनाशके बिना नहीं होता । अतः सर्वोदियतीथ जहाँ ज्ञानादि गुणोंके विकासमें सहायक है वहाँ अज्ञानादि दोषों तथा उनके कारण ज्ञानावर्णादिक कर्मोंके विनाशमें भी सहायक हे--वह उन सब रुकावटोंको दर करनेकी व्यवस्था करता है जो किसीके विकासमें बाधा डालती हैं। यहाँ तीथको स्वादयका निमित्त कारण बतलाया गया है तब उसका उपादान कारण कोन ? उपादान कारण वे सम्यग्दशनादि आत्म- गुण ही हैं जो तीथंका निमित्त पाकर मिथ्यादशनादिक दूर होनेपर स्वयं विकासको प्राप्त होते हैं। इस दृष्टिसे 'सर्वोदयतीथ पदका एक दमरा अथ भी किया जाता हे ओर वह यह कि 'समस्त अभ्युदय कारणोंका--सम्यगूदश न-सम्यग्जझ्ञान-सम्यकचा रित्ररूप त्रिस्‍्न-धर्मोका--जो हेतु है--उनकी उत्पत्ति अभिवृद्धि आदियें (सहायक) निमित्त कारण है--वह 'सर्वोदियतीथ” है #। इस रृष्टिसे ही, कारणम कार्यका उपचार करके इस तीथफो धमतीथ कहा जाता है ओर इसी दृध्टिसे बीरजिनेन्द्रको धमतीथका कर्त ( प्रवर्तक ) लिखा हैं; जैसा कि ध्वों शताव्दीकी बनी हुई जयधवला' नामकी सिद्धान्तरीक्राम उद्धत निम्न प्राचीन गाथासे प्रकट है-- निस्म॑सयकरो वीरो महावीरो जिणचमा । राग-दोस-मयादीदो धम्मतित्थस्स कारश्मो ॥ इस गाथामें वीर-जिनको जो निःसंशयकर-- संसारी प्राणियों ~ = त गामो भ [1 9 11 र # “सर्वेषामभ्युदयकारणानां सम्यग्दशनज्ञानचारित्रभेदानां हेतु व्वादभ्युदयद्देतुत््वोपपत्ते: ” --विद्यानन्दः ` |




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