छत्रप्रकाश | Chatraprakash
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
176
श्रेणी :
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लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
श्यामसुंदर दास - Shyam Sundar Das
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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छन्द 1
सेरी छपा ऊख जै पावै। ता कवि रीति बुद्धि विल्सायै ॥
कविता रीति कठिन रे भाई । वाहिन समुद् पिर, .नहि' जार ॥
वड़ो वंस वरनो जा चादि । कैसे खमिति अवग ॥
चह' ओर चंचल चितु धावे । विम चुद्धि ठद्दरान न पाये ॥
बांधो विपे सिंधु की डोरै। फिर फिर लोभ लहर में बोरे॥
जञा उर विमल बुद्धि ठहराई । ता आनंद. सिंछु छहराई ॥
उठी লন सिंचु छी लहरें | जल मुकता ऊपर हौ छदरं ॥
छदरि छदरि छिति मंडरु छायो । खनि सनि वीर दियो झुलसायों ॥
दोहा | ॥ ~
दान दया घमलान में , जाके हिये उच्छ ।
ॐ ~...
सेोही बीर बखातनिये , ज्यो' छत्ता” छितिनाह ॥ ४ ॥
छन्द ।
भूमिनाद कै वंस बखानों। सबही आदि सान क जानं ॥
एक भान सब जग के तषि जर्दा माज से देखि उव्यारे ॥
सुर नर मुनि दिन अजलि बांधे । करत प्रभाम भगति के कंधे ॥
एकचक्र रथ पे चढ़ि धाचे। सकर गगन मंडल फिरि आवे ॥
सारि दजार अघर नित» सारे । धर्म करभ दिन भ्रति विस्तारे ॥
कमर षयो' न मुखव्याई निदारे । च्छि दैत कर खस पलार ॥
करनि वरप जल जगत जिवाव । चार कटू संचार न पाये ॥
कार वाधि निज्भु गति से राख्यो । एक ज्षीम जस ज्ञात न भाप्यो ॥
१--पहिर = वासव में पेर--उत्तीर्ण रोना, पैरना, तरना ।
२--छत्ता > महाराज छुत्रशाल का प्यार का घरेझ नाम ।
३--कहा जाता कि जलास्जलि पाने से सूय्येदेव साठ सहस्र देत्यों का नित्य
विनाश करते हैं । *» .“-
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