छत्रप्रकाश | Chatraprakash

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Chatraprakash by लाल कवि - Lal Kaviश्यामसुंदर दास - Shyam Sundar Das

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लाल कवि - Lal Kavi

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श्यामसुंदर दास - Shyam Sundar Das

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( २ ) छन्द 1 सेरी छपा ऊख जै पावै। ता कवि रीति बुद्धि विल्सायै ॥ कविता रीति कठिन रे भाई । वाहिन समुद्‌ पिर, .नहि' जार ॥ वड़ो वंस वरनो जा चादि । कैसे खमिति अवग ॥ चह' ओर चंचल चितु धावे । विम चुद्धि ठद्दरान न पाये ॥ बांधो विपे सिंधु की डोरै। फिर फिर लोभ लहर में बोरे॥ जञा उर विमल बुद्धि ठहराई । ता आनंद. सिंछु छहराई ॥ उठी লন सिंचु छी लहरें | जल मुकता ऊपर हौ छदरं ॥ छदरि छदरि छिति मंडरु छायो । खनि सनि वीर दियो झुलसायों ॥ दोहा | ॥ ~ दान दया घमलान में , जाके हिये उच्छ । ॐ ~... सेोही बीर बखातनिये , ज्यो' छत्ता” छितिनाह ॥ ४ ॥ छन्द । भूमिनाद कै वंस बखानों। सबही आदि सान क जानं ॥ एक भान सब जग के तषि जर्दा माज से देखि उव्यारे ॥ सुर नर मुनि दिन अजलि बांधे । करत प्रभाम भगति के कंधे ॥ एकचक्र रथ पे चढ़ि धाचे। सकर गगन मंडल फिरि आवे ॥ सारि दजार अघर नित» सारे । धर्म करभ दिन भ्रति विस्तारे ॥ कमर षयो' न मुखव्याई निदारे । च्छि दैत कर खस पलार ॥ करनि वरप जल जगत जिवाव । चार कटू संचार न पाये ॥ कार वाधि निज्भु गति से राख्यो । एक ज्षीम जस ज्ञात न भाप्यो ॥ १--पहिर = वासव में पेर--उत्तीर्ण रोना, पैरना, तरना । २--छत्ता > महाराज छुत्रशाल का प्यार का घरेझ नाम । ३--कहा जाता कि जलास्जलि पाने से सूय्येदेव साठ सहस्र देत्यों का नित्य विनाश करते हैं । *» .“-




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