क़्वासि | Quaasi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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९७ पलायनवादी, प्रतिक्रियावादी स्वार्थी की मानस सन्तान दहये। तुम समसौता- वादी हो । उपनिषत का जो जघन्य समझकोतावादी दर्शन ह--वह नए सक, नख-दुनत तोड़ डालने की शिक्षा देने वाला जो कायर दर्शन हे--डउसके तुम अनुयायो हो। हट जाओ मेरे सम्मुख से। नहीं तो में तुम्हें अभी अपने प्रगतिवादी तप के बल् से भस्म कर दूं गा । इस प्रकार की आल्योचना-वृत्ति हिन्दी में चल रही है। मेरा केवल इतना निवेदन हे कि इस प्रकार के आग्रह से हिन्दी में इन लोगों की मनचाही प्रगतिशीलता का आविर्भाव नहीं होगा। प्रगतिवादी बन्घुओं को प्रगति- शीलता, जेसा में कह चुका हूँ । वास्तव 'में प्रतिगामिता है। इस प्रकार के जड़वाद को हिन्दी संसार नहों अ्रपनायेगा । मानव को उन्नत, बन्धन-समुक्त करना, मानव समाज को भेड़ियों के समाज से भिन्न स्थिति प्रदान करना, यह सब का लच्य है। पर, यदि कोई यह कहे कि राग, द्ेष, घणा और हिंसा वृत्ति को उभारने से ही उस प्रकार के समतावादी समाज का निर्माण हो सकेगा, तो मेरा निवेदन है कि ऐसी मान्यता ऐतिहासिई और वर्तमान मानव समाज के घटना-क्रम के विरुद्ध है । माक्स और एंगढस ने यह सिद्धान्त प्रतिपादित किया था कि श्रेणीबद्ध समाज में कोई कला ऐसी हो ही नहठीं सकती जो प्रत्यक्ष या गौण रूप से किसी श्रेणी विशेष के हितों को प्रतिबिम्बित न करती हो । इस सिद्धान्त को लेनिन ने ओर आगे परिवद्धित किया। लेनिन ने यह सिद्ध किया कि चूँक्वि वर्ग समाज की सम्पूर्ण कल्ला स्वभावतः पक्तावलम्बी ( 72411540 ) होती है, इसलिए श्रमिक समाज की कला को भी पक्तावलम्बी होना चाहिए । उन्होंने इस प्रकार ॐ पक्तपात का बड़ा गम्भीर विवेचन किया | सन्‌ १९०९ में उन्होने एक लेख लिखा था जिसका शीर्षक था “दल-संगठन ओर दुल-साहित्य (8 02580152003 800 12810 11061210016) | জলিল ने बतलाया कि पक्षाव लम्बन (?271158705017) का श्रर्थ क्या है। जब वर्ग भेद तीब्रतापूवंक आगे बढ़ रहा हो तब अत्येक कलाकार को अपनी वग-मेत्री या वर्ग-लगाव को स्पष्टतः प्रकद करना होगा और उस ( वर्ग ) संघ में अपना निश्चित रथान ग्रहण करना होगा । लेनिन आगे कहते हैँ : #- ^“{0 056१ 807९018 (5010; 10 0786८ € €0000€7619} 73010106019 97९59, [0 0096 380८०15 [ला 9¶ ८€ा€ा150 804 (7001-56€ 10; [06 509০0191150 7:01590191 प्ाप्ऽ॥ एप 027त 009 011001016 ০06 1781015810 [1061800105 0005 06619] 0015 01001016 800 त्वार ध एप फ 005




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