जो दास थे | Jo Daas The
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
25 MB
कुल पष्ठ :
516
श्रेणी :
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राहुल सांकृत्यायन - Rahul Sankrityayan
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सदरुद्दीन ऐनी -Sadruddin Annie
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( ६ 9
--हीग्वा, ऐसा ही हे भाई मेरे अब्दु रहमान ! हमने शाहमुरादतरिक के
शासन को कदर न को। उस जमाने में यदि आज पाँच सो भेड़ सर्दी सेमर जती,
तो कल उनको जगह हार आ मोजूद होतीं | शाहमुराद के भय से शाह-ईरान की
सेना सीमान्त पर ठहर नहीं सकती थी | उस समय हमारे लिये यहाँ से হান
और आगे कजबीन तक का रास्ता खुला हुआ था |
गहरी मीठी चाय ऊपर से हुक्का खीचकर दवारा गफूफा लगाये कोकनार
ने वृद्ध के नशे को खूब बढा दिया था। अपने दोनों कंधों को ऊपर उठा दोनों
हाथों को टो ओर फेला खुलकर साँत लेते उसने पीछे की ओर बैठे जवाब को
आँख के इशारा से हुक्का मरने के लिये का, फिर ठडे दहो गये पयाले मे
थोडी गमं चाय डालकर पिया | हुकके की चार फूक लगाने के बाद फिर बात
आरंभ की ;
दह, यदी बात है शुक्र | मेरे पुत्र भी हैं, भाई भी है | खुदा वी मेंहरबानी
पर भरोसा करके उन्हें आख्रान्ाद की ओर भेजा है। भगवान कृपा करते, जो
वह कोई काम करके आते ।
कोकनार का नशा तेज हुआ था | देग गम हो छुक्-छुक् कर रही थी | कड़वी
हरी चाय से बृद्ध ने रखे हलक को तर किया | पीछे की ओर बेठा जवान बूढ़े के
इशारे की प्रतीक्षा किये त्रिना चिलम पर चिलम मरते पिले बृद्ध की देने लगा |
वृद्ध भी पानी के सह तक खिंच आने तक लंबी फूक लगा रहा था | घुश्नाँ, भाप,
गरमी और लोगो के शरीर के पसीने की बदबू सबने मिलकर वहाँ की हवा को असतक्य
बना दिया था; किंतु उखा मारी-चूल की धूप म पके इन पहलवानों के ऊपर
कोई प्रभाव न था| अबकी बार ग्ब्दु रहमान सर्दार ने अपने भूतपूव सदार को
'खलीफाः या श्राप न कह बेतकल्लुफी से बात शुरू कीः
--किलिच आगा, तेरा जमाना एक मगल और बरकत का जमाना था।
तेरे नेतृत्व में जब हप जय-विजय के लिये बाते, तो बिना कैदी ( दास ) ओर
१बुलारा का भरमौर, भासूम बी भी इसका नाम था, वह दानियात्न श्रतात्ञींक
( १७७८-१८०१ दैं० ) का पुत्र था। वह अनेकबार मशहद, सरख्स, मेव,
बैरमअली के इलाकों मे कत्ल और रूट सचाफर वहाँ के लोगों को चुखारा और
समरकंद छे गया ।
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