जैन बौद्ध और गीता के आचारदर्शनों का तुलनात्मक अध्ययन भाग - 1 | Jain Bauddh Aur Geeta Ke Aacharadarshano Ka Tulanatmak Adhyayan Bhag - 1

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Jain Bauddh Aur Geeta Ke Aacharadarshano Ka Tulanatmak Adhyayan Bhag - 1 by सागरमल जैन - Sagarmal Jain

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about सागरमल जैन - Sagarmal Jain

Add Infomation AboutSagarmal Jain

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
~ १२ गीता कै त्रिगुण सिद्धान्त से तुलना को गई है । अन्तिम उन्नीसवे अध्याय मं जेन आचार का प्राचीन एवं अर्वाचीन संदर्भो मे मूल्यांकन किया गया ह । कर तज्ञताज्ञापन प्रस्तुत गवेषणा में जिन महापुरुषों, विचारकों, लेखकों, गुरुजनों एवं मित्रों का सह- योग रहा है उन सबके प्रति आभार प्रदर्शित करना मैं अपना पुनीत कतंव्प समझता हू। कृष्ण, बुद्ध और महावीर एवं अनेकानेक ऋषि-मह॒र्षियों के उपदेशों की यह पवित्र घरोहर, जिसे उन्होंने अपनी प्रज्ञा एवं साधना के द्वारा प्राप्त कर मानव-कल्याण के लिए जन-जन में प्रसारित किया था, आज भो हमारे लिए मार्गदर्शक हं भौर हम उनके प्रति श्रद्धावनत्‌ हैं । लेकिन महापुरुषों के ये उपदेश, आज देववाणी संस्कृत, पालि एवं प्राकृत मे जिस रूप में हमें संकलित मिलते हैं, हम इनके संकलनकर्ताओं के प्रति आभारी हैं, जिनके परिश्रम के फलस्वरूप वह पवित्र थाती सुरक्षित रहकर आज हमें उपलब्ध हो सको हैँ । सम्प्रति युग के उन प्रबुद्ध विचारकों के प्रति भी आभार प्रकट करना आवश्यक हूँ जिन्होने बुद्ध, महावीर मौर कृष्ण के मन्तव्यों को युगीन सन्दर्भ में विस्तारपूर्वक विवे- चित एवं विश्लेषित किया हैँ । इस रूप में जैन दर्शन के मर्मज्ञ पं० सुखलालजी, उपाघ्याय भमरमृनि जी, मुनि नथमलजी, प्रो ° दलसुख भाई मालवणिया, बौद्ध दर्शन के अधिकारी विद्वान्‌ धर्मानन्द कौसम्बी एवं अन्य अनेक विद्वानों एवं लेखकों का भी मैं आभारो हूँ, जिनके साहित्य ने मेरे चिन्तन को दिशा-निर्देश दिया है । मैं जैन दर्शन पर शोध करने वाले डॉ० टाटिया, डॉ० इन्द्रचन्द्र शास्त्री, डॉ० पदम राजे, डाँं० मोहनलाल मेहता, डॉ० कलघटगी, डॉ० कमल चन्द सोगानी एवं डॉ० दयानन्द भागंव आदि उन सभी विद्वानों का भी आभारी हूं, जिनकें शोध ग्रन्थों ने मुझे न केवल विपय भौर शैली के समझने में मार्गदर्शन दिया वरन्‌ जैन ग्रन्थों के अनेक महत्त्वपूर्ण सन्दर्भों को बिना प्रयास के मेरे लिए उपलब्ध भी कराया है হুল सबके अतिरिक्त म विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं के उन लेखकों के प्रति भी आभारी हूँ, जिनके विचारों से प्रस्तुत गवेषणा में लाभान्वित हुआ हूँ । उन गुरुजनों के प्रति, जिनके व्यक्तिगत स्नेह, प्रोत्साहन एवं मार्गदशंद ने मुझे इस कार्य में सहयोग दिया है, श्रद्धा प्रकट करना भी मेरा अनिवार्य कर्तव्य है। सर्वप्र थम मैं सोहाद, सौजन्य एवं संयम की मूर्ति श्रद्धेय गुरुवयं डॉ० सी० पी० ब्रह्मों का अत्यन्त ही आभारी हूँ। अपने स्वास्थ्य की चिन्ता नहो करते हुए भी उन्होंने प्रस्तुत प्रन्थ के अनेक अंशों को ध्यानपूर्वक पढ़ा या सुना एवं यथावसर उसमे सुधार एवं संशोधन के लिए निर्देश भी किया । मैं नहीं समझता हूँ कि केवल शाब्दिक आभार प्रकट करने मात्र से मैं उनके प्रति अपने दायित्व से उक्रण हो सकता हूँ ।




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now