अभिशप्त | Abhishapt

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Abhishapt by यशपाल - Yashpal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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दास घर्सें | पर भय से खो जल में गिर पढ़े । दस्युओं ने पराजित थवन को निशान कर स्री-पुरुषों को बन्दी बना लिया । एश्ां के निर्पत्रण में यवन नाविक बचे हुए बेड़े को श्रात्घ-तट की श्रीर हे चले | रद ९ मे लूट का स्वर्ण बहुमूल्य द्रव्य श्र बन्दी दास-दासियों को ले दस्युदल के नगरों में पहुँचे । धन को संचय करने की प्रति से दीन श्रावश्य- कता से श्रपिक घन पाये दरयु दल जहाँ पहुँचते मदिरालयों के ९वागी बल्ा- शूषणों के विक्रेता वेश्याएँ लालायित नेन्नो आर गदूगदू से उन का स्वागत फरतीं । चतुर व्यापारी उन्मत्त दस्पुश्ों से घमी घन लूट में छ़ीने उनके द्रव्य को सौदे के रूप से थिया सेते श्र द्रष्यों के मूल्य में दिये घन को मदिरा श्रौर दूसरे मोग्य-पदायों के मूख्य में लौटा लेते । कंगाल दस्यु फिर कंगाल बन जीविका के लिए साइसिक कार्य की पोज में सपुद्रतट को श्र चक्ष देते । धवन दु।सन्दामियाँ विशेष्र शाकर्षण के पणय थे । शारीरिक श्रम से घूणा करने वाले शरीर बुद्ध नागरिक इन बलिष्ट दास की खोज में रहते | राजवंशी श्रौर सामन्त कहीं किसो दूसरे झाभय की श्राशा ने कर सकने वाले दहन दासों को जिनका श्पने स्वामी के श्रतिरिक्त कोई ने था प्रजा से जिन का कोई सम्पकं ने था श्रपनी शक्ति समझते थे । बद्ध वेश्याएँ गौर वर्ण पिंगल केश यवनियों के शरीर से कौतुददश्ापूर्ण कासुकता का भरपूर मूल्य पाने की श्राशा करती थीं | बाजार में इन बन्दियों के श्राने पर उत्सव समारोह हो जाता | मद्दाराज सीसुक सात्तताइन के शरमयधान से ही दस्पुदल का श्रर्तित्व था | उनकी इस छुपा के प्रति छुतशता से श्रौर राजमक्ति की कर्तव्य स्वरूप प्रब्यो श्रौर दांगों का प्रथम प्रदर्शन शाज-प्रासाद में होता | मदं।गज मे सिदते के बइद श्राक्ार गुक्का चुन लिये । जम की टष्टि दसियों छोर दा की पंक्तियों की श्रोर गईं | दीमा दाशियों की पंक्ति में बैठी थी । उस कें मूहयबान वल्नेकुचहो जाकर बिश्नी हो गये थे । उस के मयनें की मादकता कातरता में शर मु की का शंगुर भर शावणय भयात की उदासी के पीलेपन में जदलु गया था । हस्थुद्मों मे सस की कशों की सुनी शोभा दिलाने के किये देखी पोल कहो




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