ख़लजी कालीन भारत | Qhalajii Kaaliin Bhaarat

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Qhalajii Kaaliin Bhaarat by सैयद अतहर अब्बास रिज़वी - Saiyad Athar Abbas Rizvi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[ थ ] वह खज़ाइनुल फ़ुनतृह में उसकी प्रशंसा करने को विवश हूम्रा है। उसके श्रान्तरिक भाव दिवलरानी लि. खाँ में खुलकर प्रकट हुए हैं । दिवनरानी लिख, खाँ मेँ सुत्तान के ज्येष्ठ पत्र सिख, खाँ तथा ग्रुजरात के राजा कणं की पत्री देवन्देवी के प्रेम तथा विवाह की कथा का उल्देख है किन्तु इसके साथ साथ श्रलाउदीन की विजयों का भी संक्षिप्त उल्लेख कर दिया गयादहै। गुजरात की विजय का विवररा इस काव्प में श्रा>क विस्तार के साथ दिया गया है। खिंलत्र खाँ के साथ अठप खाँ की पथरी के विवाद के वग्एंन में अ्रमीर खसरो ने उस समग्र की वेवाहिक विधि प्रथाञ्नों का बड़े विस्तार फे साथ उल्लेख किया है । गगर की स्वच्छता, सजावट, नगरवासियों के उन्साह, बारां, फल- तमाशों, नाच-गागों, दरात के जलूस, निकाह, विदा, विदा की अन्य रस्मों, जलवे की रस्म तथा লুজ रस्मों का बड़ा ही सजीव और विशद वर्णन है। उस समय के उच्च वर्ग की सामाजिक दशा का परिचय प्राप्त करने में अमीर खसरो का यह काव्य विशेष सहायक है। ভিজ सा के पतन उसके अन्धे बनाये जाने और ग्रन्त में उसकी हत्या का उल्लेख बड़ी हो करुगा शली में है। इस प्रसंग में ग्रनेक ऐसी बातें हैं जो ग्रन्य समकालीन इतिहासों में नहीं मिलती ' नुट सिगेहर (९ आकाश ) के पहले दो सिपेहरों' में क़॒तुत्रृद्दीन मुबारकशाह को कुछ लड़ाइयों श्रौर भवन निर्माण का हाल लिखकर अमीर खुसरो ने तीसरे सिपेहर में भारत के वैभव और गोरव की प्रशंसा की है । श्रपनी जन्मभूमि के ग्रुणगान में उसका उत्माह्‌ बहुत बढ़ जाता है । वह यहाँ के जलवायु, पद्गु-पक्षी तथा प्राकृतिक हृश्यों के वर्णन में विशेष आनन्द और गौरव का यनुभवय करता है। दशेन और अध्यात्म विद्या के ज्ञान में वह भारतवासियों के बराबर किसी को नही समभता । भारत और इसके निवासियों की भाषाओञ्रों के ज्ञान को वह सबसे वदृकर मानता है । इसी अध्याय में जादू टोने आदि का भी उल्लेख है जिसके अनेक प्रदर्शतों की उस थूरि भूरि प्रशंसा को है। झन्य अध्याथों में समकालीन राजनीति पर हृष्टिपात किया है और अलंक/रिक रूप में सुल्तानों और अन्य अधिकारियों के कतंव्य बताये हैं । तुगलक़ नामा भ्रमीर खुसरों की अन्तिम मरानवी है । इसमें उसने खुसरो खाँ पर ग़यासुद्दीन तुग़लक़ की विजय का वृत्तांत लिखा है। दोनों श्वोर की तैयारियों और युद्ध का विस्तृत वर्णन हमें तुगलऊ नामे में मिलता है। गाजी मलिक (गयाशुद्वीन तुशलक़ ) के श्रन्य श्रमीरों को पत्र लिखने भर उनकी अपनो ओर मिलाने का हाल इस झप में हमें किसी दूसरे समकालीन इतिहप में नहों मिलता। तारीबे फ़ीरोजशाही से पता चलता है कि ग्राज़ी मलिक के लिये खुरारो खाँ का युद्ध बच्चों का खेल था किन्तु दगलक्र नामे से ज्ञात होता है कि खुसरो को पराजय संयागवश ही हुईं भ्रन्यथा ग़राज़ी मलिक पूर्णतया पराजित हो गया था। खुसरो के वर्णान की पुष्टि एसामी की फ़ुतृहुस्सलातीन से भी होती है। तारीखे मुबारकशाही में यह हाल अ्रमी र खूंसरो से ही लिया गया है । एसाप्ी * ने फ़ुतूहुस्सलातीन की रचना रबीउत श्रव्वल ७५१ हि. (मई १३५४० ई०) में अपनी अवस्था के चालीसवें वर्ष में की । यह इश़िद्वास पद्म में है और फ़िरदौसी के शाहनामे ---~ ~~~ १. प्रत्यक निपेदर को पुस्तक का एक अध्याय सम फ़ना चाहिये। २. एसामी क विषय में “गलाम वैंश के इतिहास”? में विस्तार के साथ लिखा जा चुका है। उसका जन्म ७११ दि० (१३११ ३०) में हुआ | (१३२७ ३०) सें १६ वर्ष की अवस्था में, राजधानी के देहली से दौलताबाद बदलने के कारण, वह भी अपने दादा ই, লাখ গুলী से द्ौलताबाद पहुँचा। ७२६ ६० से ७५१ हि० तक वड कदाचित्‌ दौलतावाद्‌ मेँ ही रहा । ७५१ हि० के उपरान्त उसके सम्बन्ध में कहीं से कुछ पता नहीं लगता । +




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