स्वाधीनता की चुनौती | Swadhinata Ki Chunauti

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Swadhinata Ki Chunauti by शान्तिप्रसाद वर्मा - Shantiprasad Verma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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एक (न पचतः ০ ৯.৫ কার্ধীলজ হী कुली 3. विवय प्रवेश (~ ~~ ¢ एक्क महान एतिहासिक परिवतन १५ अगस्त १९४७ को भारतीय इतिहास मे एक एमी बड़ी घटना हुई जिसके सूल्य को बढ़ा चढ़ा कर नहीं आंका जा सकता । यह ढ़ेड सौ वर्ष के दीघेकाल में हमारे देश की नस-वस में बैठ जाने वाले अंग्रेजी साम्राज्य का अचानक ममेट लिया जाना था! यह्‌ वह्‌ घड़ी थी जिसके लिये हम सदियों से वेचैन धे ओर जिसे निकट लाने के लिये पिछन्नी आधी शताब्दी में हमारे देश के सर्वश्रेष्ठ व्यक्तियों ने अपने जीवन का सर्वस्व भेंट कर दिया था । इतिहास को भकुभोर डालने वाली एक बड़ी घटना थी यह ! एक्क लंवे- अरसे से अंग्रेज शासकों के आश्वासन हमें मिल रहे थे कि वे राज्य की सत्ता को हमारे हायों से. सीपना चाहते हैं । पर ज्यों-ज्यों ये आश्वासन अधिक निश्चित होते जा रहे थे, सत्ता-परिदर्तन की उनकी शर्तें भी अधिक कड़ी होती जा रही थी । जद कभी भी तिना किसी शतं के आजादी प्राप्ति करने के लिये हमने आवाज उठाई, फौरन ही एक सशक्त साम्राज्य का समस्त पाशविक वल उसे कुचल डालने में जुट पड़ता था। युद्ध के दिनों में विश्व शान्ति के नाम पर हमने देश वी बाजादी की सांग की, पर उसका परिणाम यह निकला कि জন के यांवी और नेहरू जैसे नियत्ता और विदर्शक, जौर सहन्नों अन्य व्यक्ति, जेल के सीखचों में बन्द कर दिए गए । हमारे दौर अंग्रेजी साम्राज्यवाद के वीच की ग॒ृत्वी को युलकाने के लिये पहिछे की कई योजनाएं हमारे सामने आई, पर हम ज्यों-ज्यों उनके যি নজর > --- হন न्भ 2৮ पीछे > ~~) ~ निकट बढ़ते गए; मृगतृण्या के जलाशय के समान दे पीछे हटती यः छम) 4 পদ] ^~ ४ न ५ १६४२ मे; जद एशिया में यूरोप के साम्राज्य तहस-नहस हो रहे थे और




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