व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र | Vyakhya Pragyapti Sutra

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Vyakhya Pragyapti Sutra by स्वामी श्री ब्रजलाल जी महाराज - Swami Shri Brajalal JI Maharaj

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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दितोय उद्देशक--विरति (सूत्र १-३८) १२४-१३६ सुप्रत्याख्यानी और दुष्प्रत्याख्यानी का स्वरूप १२४, मुप्रत्याख्यान झौर दुष्प्रत्याख्यान का रहस्य १२४, प्रत्याख्यान के भेद-प्रभेदों का निरूपण १२६, प्रत्याख्यान की परिभाषाएँ १२७, वशावध सर्वोत्तरगुणप्रत्याख्यान का स्वरूप १२७, अ्रपश्चिम मारणान्तिक सल्लेखना जोषणा-भ्राराधनता की व्याख्या १२९, जीव और चौवीस दण्डको में मूलगरुण-उत्तरगुण प्रत्याख्यानी-अ्रप्रत्याख्यानी की वक्तग्यता १२९, मूलोत्तरगुणप्रत्याख्यानी-अ्रप्रत्याब्यानी जीव, पचेःद्रयतिर्यचो ग्रौर मनुष्यो मे भ्रत्पबहुत्व १३०, सवंत भ्रौर देशत. मूलोत्तरगुणप्रत्याख्यानी तथा भ्रप्रत्याख्यानी का जीवो तथा चौवीस दण्डको में अस्तित्व और अल्पत्रहुत्व १३१, जीवो तथा चौवीस्र दण्डको मे सयत प्रादि तथा प्रत्याख्यान भ्रादि के श्रस्तित्व एव प्रल्पबहुत्व की प्ररूपणा १३३, जीवो की शाश्वतता-प्रथाश्वतता का भ्रनेकान्तगेली से निरूपण १३५। तृतीय उहेश्षक- स्थावर (सूत्र १-२४) १३७-१४६ वनस्पतिकायिक जीवो के सर्वाल्पाह।र फाल एवे सवं महाकाल की वक्तव्यता १३७, प्रावृट्‌ श्रौर वर्षा ऋतु मे वनस्पत्िकायिक स्व॑महाहारी क्यो ? १३८, ग्रीष्मऋतु मे सर्वाल्पाहारी होते हुए भो वनस्पतियाँ पत्रित-पुष्पित क्यों ? १३८, वनस्पतिकायिक मूल जीवादि से स्पृष्ट मूलादि के आहार के सबन्ध मे सयुक्तिक समाधान १३८, वृक्षादि रूप वनस्पति के दस प्रकार १३९, मूलादि जीवो से व्याप्त मूलादि द्वारा भ्राहारग्रहण १३९, श्राल्‌, मूला आदि वनस्पतियो मे श्रनन्त जीवत्व ्रौर विभिन्न जीवत्व की प्ररूपणा १३९, 'श्रनन्त जीवा वि विहसत्ता' कौ व्याख्या १३९, चौवीस दण्डको मे लेश्या की श्रपक्षा श्रल्पकमेत्व श्रौर महाकममंत्व की प्रूपणा १८०, सपक्ष कथन का श्राणय १४१, ज्योतिष्क दण्डक मे निषेध का कारण १४१, चौवीस दण्डकवर्तीं जीवो मे वेदना भ्रौर निजंराके तथा इन दोनो के समय के पृथक्त्व का निरूपण १४१, वेदना श्रौर निज॑रा कौ व्याख्या के अनुसार दोनो कै पृथक्त्व कौ मिद्धि १४५, चौबीस दण्डकवर्ती जीवो की शाष्वतता-श्रशाश्वतता का निरूपण १४६, श्रव्युच्छित्तिनयाथता व्युच्छित्तिनियायंता का भ्रथं १४६। चतुर्थ उद्देशक--जीव (सूत्र १-२) १४७-१४८ षड्विध ससारसमापन्नक जीवो के सम्बन्ध में वक्तव्यता १४७, षबड़्विध ससारसमापन्नक जीवो के सम्बन्ध में जीवाभिगमसूत्रोक्त तथ्य १४८। पंचम उद्देशक--पक्षी (सूत्र १-२) १४९-१५० सेचर-पचेन्द्रिय जीवो के योनिसग्रह भ्रादि तथ्यो का भ्रतिदेशपूव॑क निरूपण १४९, सेच र-पचेन्दरिय जीवो के योनिसग्रह के प्रकार १५०, जीवाभिगमोक्त नध्य १५० ' छठा उद्देशक--झायु (सूत्र १-३७) १५१-१६३ चौवीन दण्डकवर्तीं जीवो के आयुष्यबन्ध ओौर श्रायुष्यवेदन के सम्बन्ध मे प्ररूपणा १५१, चौबीस दण्डकवर्ती जीवो के महावेदना-श्रल्पवेदना के सम्बन्ध मे प्ररूपणा १५२, चौवीस दण्डकवर्ती जीवो मे ग्रनाभोग- निरवेतित श्रायुष्यबन्ध की प्ररूपणा १५४, भ्राभोगनिवंतित সী श्रनाभोगनिवंतित भ्रायुष्य १५४, समस्त जीवो के ककंश-प्रककंश वेदनीयकममबन्ध কা हैतुपूवंक निरूपण १५४, करकशवेदनीय और भ्रकर्कशवेदनीय कर्मबन्ध कंसे গ্সী कव ? १५६, चौवीस दण्डकवर्तीं जीवो के साता-भरसातावेदनीय कबन्ध श्रौर उनके कारण १५६, दुषम- { १६)




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