त्रीणि छेदसूत्राणि | Treeni Chhedsutrani

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Treeni Chhedsutrani  by स्वामी श्री ब्रजलाल जी महाराज - Swami Shri Brajalal JI Maharaj

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about स्वामी श्री ब्रजलाल जी महाराज - Swami Shri Brajalal JI Maharaj

Add Infomation AboutSwami Shri Brajalal JI Maharaj

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
व्यवहार-शब्द रबना वि-~-प्रव ह+ धञा | 'নি' धौर भ्रव ये दो उपसगं है । हृज्‌- हरणे धातु है । ह धातु से घञ्न. प्रत्यय करने पर हार बनता है । वि~ भव --हार-- इन तीनो से व्यवहार शब्द की रना हई है ! 'वि'-- विविधता या विधि का सूचक है। 'झव--सदेह का सूचक है। 'हार--हरण क्रिया का सूचक है। फलितार्थ यह है कि विवाद विषयक नाना प्रकार के सशयो का जिससे हरण होता है वह “व्यवहार” है । यहु व्यवहार शब्द का বিমা है । व्यवहारसूत्र के प्रमुख विवय १. ब्यवहार, २ व्यवहारी भ्रौर ३ व्यवहतंवब्य--ये तीन इस सूत्र के प्रमुख विषय हैं। दसवें उद्देशक के झ्नन्तिम सूत्र में प्रतिपादित पांच व्यवहार करण (साधन) हैं, गण की शुद्धि करने वाले गीतार्थ (प्राचार्यादि) व्यवहारी (व्यवहार क्रिया प्रवतंय) कर्ता हैं*, श्रौर श्रमण-श्रमणियां व्यवह॒र्तव्य (व्यवहार करने योग्य) हैं । भ्र्थात्‌ इनकी अतिचार शुद्धिरूप क्रिया का सम्पादन व्यवहारशज्ञ व्यवहार द्वारा करता है । जिस प्रकार कुम्भकार (कर्ता), चक्त, दण्ड मृत्तिका सूत्रध्रादि करणोद्वारा कुम्भ (कमं) का सम्पादन करता है--इसी प्रकार व्यवहारज्ञ व्यवहारो द्वारा व्यवहतंग्यो (गण) की श्रतिचार शुद्धि का सम्पादन करता है3 । ध्यवहार-ष्याख्या व्यवहार की प्रमूख व्याख्याय दो हैँ । एक लौकिक व्याख्या भौर दूमरी लोकोत्तर भ्याख्या 1 लौकिक व्याख्या दो प्रकार की है--१ सामान्य और २ विशेष | सामान्य व्याख्या है--दूसरे के साथ किया जाने वाला आचरण प्रथवा रुपये-पंसो का लेन-देन * । विशेष व्याश्या है-- प्रभियोग की समस्त ्रक्रिया श्र्थात्‌ न्याय । इस विशिष्ट व्याख्या से सम्बन्धित कु शब्द प्रचलित ह । जिनका प्रयोग वंदिक परम्परा की श्रुतियो एव स्मृतियो मे चिरन्तन कालसे चला भारहा है“ । यथा-- १, व्यवहारशास्त्र--(दण्डसहिता) जिसमे राज्य-शासन द्वारा किसी विशेष विषय मे सामूहिक रूप से बनाये गये नियमो के निणेय भ्रौर नियमो का भग करने पर दिये जाने वाले दण्डो का विधान व विवेचन होता है । १. वि नानाथ ^ऽव' सदेह, हरण ' हार उच्यते । नाना सदेहृहरणाद्‌, व्यवहार इति स्थिति ॥--कात्यायन । नाना विवाद विषय सशयो हियतेऽनेन इति व्यवहार । २. चत्तारि पृरिसजाया पण्णत्ता, त जहा-- गणसोहिकरे नाम एगे नो माणकरे । --ग्यव० पुरुषप्रकार सूत्र ३ गाहा--ववहारी खलु क्ता, ववहारो होई करणभूतो उ । ववहरियव्व कज्ज, क भादि तियस्स जह सिद्धी ॥ --म्य० भाष्यपीठिका गाया २ ४. न कश्चित्‌ कस्यचिन्मित्र, न कश्चित्‌ कस्यचिद्‌ रिपु । व्यवहारेण जायन्ते, मित्राणि रिपवस्तथा ।॥। --हितो० मि० ७२ ४. परस्पर मनुष्याणा, स्वार्थविप्रतिपत्तिष । वाक्यानयायाद्‌ व्यवस्थान, व्यवहार उदाहूत ॥ -- मिताक्षरा । [ १६ ]




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now