आवश्यक सूत्र | Avashyak Sutra

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Avashyak Sutra  by स्वामी श्री ब्रजलाल जी महाराज - Swami Shri Brajalal JI Maharaj

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रस्तावना आवश्यकसून एक सम्पीक्षात्सक् अध्ययन भारतीय साहित्य मे आगम' शब्द शाम्त्र का पर्यायवाची हे । आवश्यकचूणिकार ने आगम शब्द की परिभाषा करते हुए लिखा है--जिसके द्वारा पदार्थों का अवबोध होता है, वह आगम है । अनुयोगद्वारचूणि मे लिखा है--जो आप्तवचत हे, वह आगम दहै 1 अनुयोगद्वार मलधारीय टीका मे आचाय ने झ्रागम शब्द पर चिस्तन करते हुए यह स्पष्ट किया है कि जो गुरुपरम्परा से आता हे, वह श्रागम है । आचाये वाचस्पति मिश्र ने लिखा हे--जिस शास्त्र के अनुशीलन से अभ्युदय एवं ति श्रेयस्‌ का उपाय अवगत हो, वह आगम है । अभिनव- गुप्ताचाय के अभिमतानुसार जिसके पठन से सर्वागीण बोध प्राप्त हो, वह श्रागम हे । इसी प्रकार आचार्य जिनभद्गगणी क्षमाश्रमण ने विशेषावश्यकभाष्य से शास्त्र की परिभाषा देते हुए लिखा है--जिसके द्वारा यथार्थ सत्य रूप ज्ञेव का, आत्मा का परिवोध हो और अनुशासन किया जा सके, वह शास्त्र है । आगम और शास्त्र के ही श्र में सत्र शब्द का भी प्रयोग होता है। सघदासगणी ने वृहत्कल्पभाष्य मे सूत्र शब्द की व्याख्या करते हुए लिखा हे--जिसके अनुसरण से कर्मो का सरण / अ्रपनयन होता है, वह सूत्र है* । विशेषावश्यकभाष्य में निरुक्त- विधि से अर्थ करते हुए लिखा है--जो अर्थ का सिंचन / क्षरण करता है, वह सूत्र है? । आचाये अभयदेव ने स्थानागवृत्ति मे लिखा है--जिससे গণ सून्नित / गुम्फित किया जाना है, वह्‌ सूत्र हे< । बृहत्कल्पटीका में लिखा हे--यूत्र का अनुसरण करने से अष्ट प्रकार की कमें-रज का अपनयन होता है, अत वह सूत्र कहा जाता हैर । जेन साधना का प्राण आवश्यक जैन आगमसाहित्य में आवश्यकसूत्र का अपना विशिष्ट स्थान है। अनुयोगद्वारचूणि मे आवश्यक की परिभाषा करते हुए लिखा है--जो गरुणशूल्य आत्मा को प्रशस्त भावों से आवासित करता है वहे आवासक/ आवश्यक है* * । अनुयोगद्वार मलधारीय टोका मे लिखा है, जो समस्त गणो का निवासरथान है, वहं आवासक/ १ णज्जति अत्था जेण सो आगमो । “ आवश्यकचूणि १1३६ २ अत्तस्स वा वयण झआगमो । +अनुयोगद्वारचूणि पृष्ठ १६ ३ गुरपारम्पर्यणागच्छतीत्यागम । --प्रनुयौगहार मलधारीय टीका, पु २०२ ४ आसमस्तात्‌ श्रथं गमयत्ति उति श्रागम । ५ सासज्जिति तेण तहि वा नैयमायतो सत्य । ६ श्रनुसरइ त्ति सूत्त। -वृहत्कल्प भाष्य, ३११ ७, सिचति खरइ जमत्थ तम्ह्‌ा सुत्त निरुत्तवि्हिणा 1 --चि भा १३६८ ८ सूटयन्ते श्रनेनेति सूत्रम्‌ । --स्थानागवृत्ति, पृष्ठ ४९ ९ सूत्रमनुसरन्‌ रुज --अश्रष्टप्रकार कर्म अपनयति तत सरणात्‌ सूत्रम्‌ --बृहत्कल्पटीका, पृष्ठ ९५ १० सुण्णमप्पाण त पसत्यभावेहि आवासेतीति आवास । +--अनुयोगद्वारचूणि, पृ १४ [१६ ]




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