हिन्दी छन्द रचना | Hindi Chhand Rachana

Hindi Chhand Rachana by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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; दिन्दी-छन्द-रचना श्द पाद की ं एक छन्द को आप जितने भागों में विभक्त करें उसके एक भाग गे.पाद -कहा जाता है। प्रायः पाद पद्य के चतुथ भाग के अं में मम जाता है, क्योंकि. जितने भी प्रकार के छन्द प्रचलित हैं उनमें के झाधिक प्रचार उनका है. जिनके चार-चार झंश हैं । अतः एक अंश गे पाद कद्द दिया जाता है। छन्द का परिमाण और सौन्दर्य ठीक खने के लिए . नियम .बनाये गए हैं कि अमुक पाद में इतनी मात्राएँ प व हों और 'मुक पाद में ..इतनी मात्ाएँ या व्णु । जिस छन्द हे छः पाद होते हैं. उसके . छठे अंश को एक 'पाद कहा जायगा, जैसे दरडलिया:या छुप्पय छन्द में.। पाद को चरण थी कहते हैं । छन्द के लन्नण में जितने पारिभापिक शब्द प्रयुक्त किये गए थे रस सचब,की व्याख्या कर. दी गई है । इस सम्चन्ध में अब क्रेवल एक वात गई है कि जिन वर्णों को .हमने ऊपर हस्व या दीर्घ कहा है उनके- उम्बन्ध में कुछ विशेष नियम वतला दें । एक वणुं दीघें होते हुए सी कहाँ लघु माना जाता है और कहाँ लघु होते हुए भी दीर्घ माना जाता १. ये वातें छन्दों को झली भाँति समभने के .लिए आवश्यक हैं । बुन्दः्शास्त्र में हस्व और दीर्घ शब्दों के लिये लघु और शुरु शब्दों का मयोग किया जाता है । इंसलिए दम भी अर. इन्हीं पारिभापक शब्दों का.प्रयोग करेंगे । गुर का लक्षणु--- (१ दा, ई,. ऊ कऋ, ए, ऐ, ो, औऔ, ये स्वर और इनसे मिले ' हुए व्यंजन गुरु दोते . हैं । .|श्माप, -इंट, ऊँट ादि शब्दों में पहले क्र गुरु हैं । - ऐक्य,'-मोदघ छादि-शब्दों में भी प्रथमाक्षर गुरु हैं .। (९ जो चं अनुस््रार्युक्त दो तथा जिनके पीछे चिसगे लगे हों [ व्णे भी शुरु-माने जाते हैं, जैसे वंश, कंस 'और इस आदि तथा




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