भारत-रमणी | Bharat-Ramni

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Bharat-Ramni by पं. रूपनारायण पाण्डेय - Pt. Roopnarayan Pandey

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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সদ ক বারন নথ | { दुत ग ५ ५ न স प ~ ~~ + ५ ^ = प के आर नदी या तो प्रणु तर बनछ সনম भर जाये । पेस्विश्चेफ्शाव-दियादिक दमाबाकों दल जाद) यह तो नूतन मधुर प्रमयदा पुर ए, इसमें भा फ्द- অল दर किए की दे ! दम तो सच ८ हा बंद कहता इ-फोनस कहां है गर, सभी दहं सिज भाई । प्रमहट्रिस सबको दसू, यद्या जातत पं मनद) केबल दँसता और सभीकोी जीस करता प्यार रहूँ देशदेशर्मे धूम णेस, इतना द अ सदा चहु ॥ वट्‌ देखो, उस अञ्जुके पीछे जाते दु सव सरनारा। ओर पतिथध्वनि नीछ गगन व्याप्त दो रही ই সাহা | सुम सच आओ चछे, भेससे कटा--कृष्ण गोविन्द हरे ! पटी पुरानी पोथी दको, आओ आओ चले अरे ॥| ( एक नीकर जलपानका सामान छेकर आता ই । उपद्र भोजन करने बेठता है। भमक्तगण कीर्तन करते हूं। कीर्तन समाप्त होने पर भी उपन्द्र भोजन करता रहता हूं । ) उपेन्द्र--यह देखो भक्तगण, भगवानका कैसा विचित्र कैदार है ! धास मनुप्यके किसी काम न आती अगर पशु उस न खाते | उसी घाससे गायके शरीरमें दूध पेंदा होता है---और वह दूध कैसे. सहजमे मनुष्यके शरीरकों पुष्ठ करता है ! कैसा आश्चर्य है ! भक्तगण---कंसा आश्चय हे उपेन्द्र--गेंहूँसे मैदा बनता है; मैंदे और घींके मेलस पूरी बनती. है।--कैसा आश्चर्य है! . सक्तगण--कैसा आश्वर्यं है | _उपन्द्र--इस समय ये पूरियोँ रबड़ीके साथ पेठकी ओर चली जायें |! (खाता है ) हे हरि ! तुम्ही सत्य हो !




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