भारत-रमणी | Bharat-Ramni
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
129
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about पं. रूपनारायण पाण्डेय - Pt. Roopnarayan Pandey
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)সদ
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आर नदी या तो प्रणु तर बनछ সনম भर जाये ।
पेस्विश्चेफ्शाव-दियादिक दमाबाकों दल जाद)
यह तो नूतन मधुर प्रमयदा पुर ए, इसमें भा फ्द-
অল दर किए की दे ! दम तो सच ८ हा
बंद कहता इ-फोनस कहां है गर, सभी दहं सिज भाई ।
प्रमहट्रिस सबको दसू, यद्या जातत पं मनद)
केबल दँसता और सभीकोी जीस करता प्यार रहूँ
देशदेशर्मे धूम णेस, इतना द अ सदा चहु ॥
वट् देखो, उस अञ्जुके पीछे जाते दु सव सरनारा।
ओर पतिथध्वनि नीछ गगन व्याप्त दो रही ই সাহা |
सुम सच आओ चछे, भेससे कटा--कृष्ण गोविन्द हरे !
पटी पुरानी पोथी दको, आओ आओ चले अरे ॥|
( एक नीकर जलपानका सामान छेकर आता ই । उपद्र भोजन
करने बेठता है। भमक्तगण कीर्तन करते हूं। कीर्तन
समाप्त होने पर भी उपन्द्र भोजन
करता रहता हूं । )
उपेन्द्र--यह देखो भक्तगण, भगवानका कैसा विचित्र कैदार
है ! धास मनुप्यके किसी काम न आती अगर पशु उस न खाते |
उसी घाससे गायके शरीरमें दूध पेंदा होता है---और वह दूध कैसे.
सहजमे मनुष्यके शरीरकों पुष्ठ करता है ! कैसा आश्चर्य है !
भक्तगण---कंसा आश्चय हे
उपेन्द्र--गेंहूँसे मैदा बनता है; मैंदे और घींके मेलस पूरी बनती.
है।--कैसा आश्चर्य है! .
सक्तगण--कैसा आश्वर्यं है |
_उपन्द्र--इस समय ये पूरियोँ रबड़ीके साथ पेठकी ओर चली
जायें |! (खाता है ) हे हरि ! तुम्ही सत्य हो !
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