सुयेनच्वांग | Suyenachvang

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बाबू जगनमोहन वर्मा जी का जन्म सन् 1870 ई ० में हुआ। वे अपने माता पिता के इकलौती संतान थे। इनका जन्म उत्तर प्रदेश के बहुत ही प्रतिष्ठित एवं शिक्षित परिवार में हुआ। वे बचपन से ही विलक्षण बुद्धि के थे। ये हिंदी शब्द सागर के भी संपादक थे। इन्होंने चीनी यात्री के भारत यात्रा के अनुवाद हिन्दी में किया। इनके पास एक चीनी शिष्य संस्कृति सीखने आया जिससे इन्होंने चीनी भाषा का ज्ञान अर्जित किया एवं उसके यात्रा वृतांत का अनुवाद किया। उनके इस कोशिश से हमें प्राचीन भारत के समय के सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक को जानने में काफी मदद मिली।

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ग्राल्यावस्था ই “ उनके आगे उठफर घड़े द्वोनेका वर्णन था) खुपैनच्यांगके फार्नोमें पिता मुंहले इस शठरका पड़ना था कि धद अपने कपड़े संभाल- कर जाकर अपने पिताफे आगे द्वाथ बांध. विनोत भावसे घड़ा दो गया। पितानै झुपेनच्चांगकों यह चेष्टा देख चक्रित हो उससे बड़े ययारसे पूछा, कि यात कया है। छुयेनच्चांगने उत्तर दिया कि ज्ञव 'चांगव्यू' अपने पिताको बात सुनकर अपने रुथानसे उठ जड़ा हुआ तो छुयेनच्चांग केसे वही धात मपे पित्ता पुस खुन कर তা হই । पिताको चालक यदह यावृ सुनकर वड प्रसन्षता हुई। उसने अपने सरे कदत स मदत समाचारो कहा भौर सब लोग उसे सुनकर उसकी प्रशंसा करने लगे और कहने. छगे कि. यद बालक बड़ा द्वी दोनद्वार है और एक भ दिन वह यहुत घड़ा आदमी होगा | - सुयेनच्यांगका सबसे बड़ा माई घरपर दी रहता था। बछका विवाह हो गया था।. दूसरा भाई जिसका नाम 'चांग्रयी' था बौद्ध संेस्यासी दो गया था। वह छोयाोंग नगरके 'सिंग-तू! नामक विहा रहा करता था मीर बौद्ध घर्मग्रंथोंका अध्ययन कर्ताथा। तीसलसय माई सुयेनच्वांयसे शं षड़ाथा और घश्पर ही रहता था.। एक यार खागिची घरपर अपने पितामातासे मिलने आया और खुयेनच्चांगके .विद्याहुरागको देख उसे,अपने साथ पढ़ानेके लिये लोयांग नगएमें जहां वह रहा करता था ले यया। बहा अपने भाईके साथ सुयेतच्यांत गया और उसके पाक्त रहकर बीड घर्मे विनयक्रा मध्वयन करने खमा ।




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