कूर्मवंश यशप्रकाश अपर नाम लावारासा | Kurmavansh Yashaprakash Apar Nam Lavarasa

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Kurmavansh Yashaprakash Apar Nam Lavarasa by महताब चन्द्र खारैड - Mahatab Chandra Kharaid

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भूमिका ११ कहते है कि रुदाबध्द करीमले ब्यक्तियों पर राज्य करतेके छिए महक ताहूतको कत्पभ किया। उसके दो पृष्ठ हुए, शुरहिया औौर अरमिया। अरमियाके अफ़गातिया भामक पृष् हुवा जौर बृरहियाके जापफ़ सामक। माछफ राम्यका मंत्रौ निगुक्त हुआ और अफ्यातिया राज्यक्म सैदापति। इसी बफमानियादौ सतानें अफशान मामसे प्रसिद्ध हुई जौर नदी भौषिष्धयका জাদাং भ््त रहा। लफ़्यानियाकौ संतामोंमें मागे चरू कर अब्युकरध्ौद नामक व्यक्ति बहुत श्पात हुआ जिससे पठान कौ उपाधि बारभ कौ! सबसे में अफ्यान 'पठात” कह्काने रूपे। इज पढानोंमेसे काछेशां शुतरबास साझारजईका पुत्र ताबिकृशां उर्फ शाऐेशां बोहड बतौर देइस्रीके मुहमदराह बादक्ताहकै सममर्मे सारठमें आ कर समाम गतौ मूहम्मधके यहाँ नौकर हरमा। जब मुहम्मदप्ताह बाइसाहने सभाव अऊौ मुहम्मद पर बढ़ाई की तो केशवं भी पूरे अफगानोंके साथ साथ ममगादका साव छोड़ कर तरौतासरायके निकट शा कर दस यगा।! शबाब अलौसूहम्मदके मरनेके झुछ समय पश्चात्‌ ताछेखां भी यहीं पर मर बया। झपके पृष्र मुइम्मदर््ाको मगाथ असीमुहम्मदके मापति दरेलांने फिर भपने पा नौकर रख डिया बूदेखांके मरतेके बाद मुहम्मद हयाठलांगे शौकरी छोड़ दो सौर कुछ দীন हे कर दोतीबाड़ौका कार्य आरंभ कर दिया। खन्‌ ११८२ हियरौ तदनुसार धन्‌ १७६४ के पर मामे उघके एक पुत्र हुआ जिसका शाम अमौरकां रखा पया। अमौरलां बास्वाबस्वसि हो होगहार गौर माम होता षा। छः सात नर्प खेर रूवर्मे प्पतौत हुए। गह वादाद्‌ भौर गदौरका छेफ़ अधिक पसद करता पा। बह स्वयं बादसाह बस जाता শা | আদল दूसरे साविभोमेंसे क्रिसौफ़ो बजौर ক্ষিপীক্ষী উপানতি किसौको सिपाह भाषि गना कर अपने মাত-নৈলামাদূতাঘ क्रैश किया কতো শা। মহ পক্ষ ক্ষি আী দভ তই জান্দেলক্ষী ঘউখনপ দাতাবিবাঘি সাব হাতি খ ছয্র छोछमें अपते साबियोंमें बांट दिया करता बा। उसके इस स्वजाजसे इसके माता-पिता अप्रसप्त थे। मे कई হ্যস ट भौ चुके थे कि गदि ऐरी ऐसौ हो बातत रहौ तो हू बरमें कुछ मौ स रक्त सकेगा। लेकिन इस महत्वाकांसी बातकके प्य पर हग तबक कृष सौ असर गहीं होता बा। उसका यह प्वमाव जैसेका तँसा बना फा फक दिन एक पहुँचे हुए मुसछमान महात्माने इसे महत्वाकांछी शौर माप्यप्ाप्री देख कर হা কি দা तू मझत्वाकासाका शष पियेया > बूरषका साम सुल कर जमीरने बार स्वजाभाशुसार पौने कौ इच्छा प्रष्टौ । उच महात्माने झराब का प्याछा मर कर अपने होठों से कूमाकर अमौरकों हिबरा! अमीरने कमी शराब देखी मौ नहीं गी। थंसे हौ उसने प्यारा पते होने हैपादेके हिए ऊँचा झत्यया कि पाराडकी पंप साकमें पहुँची छौर प्ञाक्ता डअमौध पर फेंक कर तने भहात्माकों सैकड़ों माह्तियां दी । रस महात्माने उसको माक्रियोंक्री और যার নব ক্ষ भ्ये कष “मरे मूं हेदो भाता जीर महत्वाकाँध्ताजोका ত্যাক্য তই ছাদ भा जिसको ए भाषमसोरे पकः श्वाः जा हेरे मास्पमें यहा बा।” अमौर स्स समय तो कुछ शम मौ तका किन्तु बड़े होने पर इस घटताका स्मरण कभी उसे सुलद प्रतीत नहो हुवा}




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