जैन - जारण के अग्रदूत | Jain - Jagaran Ke Agradut
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
20 MB
कुल पष्ठ :
632
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)केही = ৬
के देदी-मेदी रेखाएं
हमारे यहाँ तीं रोका प्रामाणिक जीवन-चरित्र नही, भाचायोकि
। कार्य-कलापकी तालिका नहीं, जेन-सघके लोकोपयोगी कार्योकी सूची
नही, जन-सभ्राटो, सेनानायको, मतियोके वल-परक्रम बौर शसिन-
प्रणालीका कोई लेखा नही, साहित्यिको एव कवियोका कोई परिचय
नही । ओौर-तो-गौर, हमारी आँखोके सामने कल-परसो गुज़रनेवाली
विभृतियोका कही उल्लेख नही, गौर ये जो पौ.चार बडे-वढे मौतकी
चौखटपर खडे हे, इनसे भी हमने इनके अनुभवोको नहीं सुना है, और
आयद भविष्यमे दस-पाँच पीढीमे जन्म लेकर मर जानेवालों तकके लिए
परिचय लिखनेका उत्साह हमारे समाजको नही होगा ।
प्राचीन इतिहास न सही, जो हमारी आँखोके सामने निरन्तर गुजर
रहा है, उसे ही यदि हम वटोरकर रख सके, तो शायद इसी बटोरनमें
कुछ जवाहरपारे भी आगेकी पीढीके हाथ लग जाएँ । इसी दृष्टि से--
वीती ताहि विसार दे भ्रागेको सुध लेहि
नीतिके अनुसार सस्मरण लिखनेका उरते-उरते प्रयास किया । डरते-
डरते इसलिए कि प्रथम तो में स्मरण लिखनेकी कलासे परिचित
नही । दुसरे अत्यन्त सावधानी वरतते हुए भी यत्र-तत्र आत्म-विज्ञापनकी
गन्ब-सी आने लगी । नौसिलुआ होतेके कारण इस गन्धको निकालनेमे
समथं न हो सका । तीसरे भेरा परिचय क्षेत्र भी अत्यन्त सकूचित गौर
सीमित था । फिर भी साहस करके दो-एक सस्मरण, पत्रोको भेज दिये।
प्रकाशित होनेपर ये अनसेंबरी टेढी-मेदी रेखाएं भी अपनोको पसन्द
आईं, और उन्हीके आग्रहपर ये चन्द सस्मरण गौर लिखे जा सके ।
। इत सस्मरणोको ज्ञानपीठकी ओरतसे पुस्तकाकार प्रकाशित करनेकी
वात उठी तो मुझे स्वयं यह प्रयत्त अधूरा और छिछोरापन-सा मालूम
देने लगा। “इन्ही महानुभावोके सस्मरण क्यों प्रकाशित किये जाये,
अमुक-अमुक महानृभावोके सस्मरण भी क्यों न प्रकाशित किये जाये ?”
यह् स्वाभाविक प्रइन उठना लाज़िमी था। लोकोदय-प्रन्थमालाके विद्वान
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