मानस संका समाधान | Manas Shanka Samadhan
श्रेणी : धार्मिक / Religious, हिंदू - Hinduism
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5.98 MB
कुल पष्ठ :
184
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
He was great saint.He was co-founder Of GEETAPRESS Gorakhpur. Once He got Darshan of a Himalayan saint, who directed him to re stablish vadik sahitya. From that day he worked towards stablish Geeta press.
He was real vaishnava ,Great devoty of Sri Radha Krishna.
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)दिव और रामकी सच्ची उपासनाका रददस्य श्प्य
संकर प्रिय मम दोही सिव द्वोही सम दास ।
तेनर करहिं कछूप भरि घोर नरक महू बास ॥
अर्थात् 'जो अपनेको शिंवजाका प्रिय दास मानकर सुझसे
द्रोद मानता है, अथवा मेरा दास बनकर डिवजीसे द्वोह मानता है,
वह वस्तुत: न मेरा ही भक्त है और न शिवजीका ही; वल्कि वह
दम दोनोका द्रोही है । अतः: इस द्रोहके प्रायश्चित्तस्रूप उसे
कल्पभर घोर नर्कमें वास करना पड़ेगा |?
इस डाइ्मामें उदाहरणसखरूप राग्णका नाम पेदा कियया गया
है। परन्तु वह भी जव्तक 'श्रीरामजीसे दोह बिना किये श्रीडिव जीकी
तपस्या करता रहा, तवतक भगवान् शिव अनुकूल होकर उसे सुख-
सम्पति प्रदान करते रहे । जैसे---
सादर सित्र कह सीस चढाए । एक एक के कोटिन्ह पाए ॥
जो संपति सिव राचनहि' दीन्दि दिए दस माथ ॥
--इत्यादि प्रमाणोसे सिद्ध होता है; परन्तु जब उसने श्रीराम-
चन्द्जीसे द्रोह आरम्भ किया तथा रामभक्तो, देवता, गो और ब्राह्मणोको
दुःख देने छगा, तब वही डिवजी उस रावणके, बिनाशामें तत्पर हुए ।
जव एथ्वीने दुःखित होकर देवताओंके साथ ब्रह्मलोकमें जाकर
रावणके नाशकें न्थयि पुकार मचायी तव श्रीड्िंबजीने उनके साथ
दोकर वे जहाँ थे बढ़ीं भगवान्की स्तुति करनेके लिये कहा । जैंसे---
तेहि समाज गिरिजा में रहेडँ । अवसर पाइ वचन एक कहेडँ ॥
हरि व्यापक सर्वत्र समाना । झेम ते अगट होहिं में जाना ॥
मोर चचन सच के सन साना । साधु साधु करिं घ्रह्म बखाना ॥
तथा जत्र श्रीरामचन्द्रजी अवतार लेकर रावणका विध्वंस करने
लगे, तत्र श्रीदिवजी द्पसे झले न समाये और अपने उसी दंगे, तब श्रीदिवजी हपसे झले न समाये और अपने उसी रामद्रोही
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