मानस संका समाधान | Manas Shanka Samadhan

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He was great saint.He was co-founder Of GEETAPRESS Gorakhpur. Once He got Darshan of a Himalayan saint, who directed him to re stablish vadik sahitya. From that day he worked towards stablish Geeta press.
He was real vaishnava ,Great devoty of Sri Radha Krishna.

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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दिव और रामकी सच्ची उपासनाका रददस्य श्प्य संकर प्रिय मम दोही सिव द्वोही सम दास । तेनर करहिं कछूप भरि घोर नरक महू बास ॥ अर्थात्‌ 'जो अपनेको शिंवजाका प्रिय दास मानकर सुझसे द्रोद मानता है, अथवा मेरा दास बनकर डिवजीसे द्वोह मानता है, वह वस्तुत: न मेरा ही भक्त है और न शिवजीका ही; वल्कि वह दम दोनोका द्रोही है । अतः: इस द्रोहके प्रायश्चित्तस्रूप उसे कल्पभर घोर नर्‌कमें वास करना पड़ेगा |? इस डाइ्मामें उदाहरणसखरूप राग्णका नाम पेदा कियया गया है। परन्तु वह भी जव्तक 'श्रीरामजीसे दोह बिना किये श्रीडिव जीकी तपस्या करता रहा, तवतक भगवान्‌ शिव अनुकूल होकर उसे सुख- सम्पति प्रदान करते रहे । जैसे--- सादर सित्र कह सीस चढाए । एक एक के कोटिन्ह पाए ॥ जो संपति सिव राचनहि' दीन्दि दिए दस माथ ॥ --इत्यादि प्रमाणोसे सिद्ध होता है; परन्तु जब उसने श्रीराम- चन्द्जीसे द्रोह आरम्भ किया तथा रामभक्तो, देवता, गो और ब्राह्मणोको दुःख देने छगा, तब वही डिवजी उस रावणके, बिनाशामें तत्पर हुए । जव एथ्वीने दुःखित होकर देवताओंके साथ ब्रह्मलोकमें जाकर रावणके नाशकें न्थयि पुकार मचायी तव श्रीड्िंबजीने उनके साथ दोकर वे जहाँ थे बढ़ीं भगवान्‌की स्तुति करनेके लिये कहा । जैंसे--- तेहि समाज गिरिजा में रहेडँ । अवसर पाइ वचन एक कहेडँ ॥ हरि व्यापक सर्वत्र समाना । झेम ते अगट होहिं में जाना ॥ मोर चचन सच के सन साना । साधु साधु करिं घ्रह्म बखाना ॥ तथा जत्र श्रीरामचन्द्रजी अवतार लेकर रावणका विध्वंस करने लगे, तत्र श्रीदिवजी द्पसे झले न समाये और अपने उसी दंगे, तब श्रीदिवजी हपसे झले न समाये और अपने उसी रामद्रोही




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