ज्ञानसार भाग 2 | Gyansara Part-ii
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
13 MB
कुल पष्ठ :
396
श्रेणी :
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No Information available about मुनिश्री भद्रगुप्तविजयजी - Munishree Bhadrguptvijayji
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)७
: को-भगाने की सामथ्यं है डुगडुगी की डुहड्डह्दाट और मिर्चो के
धूए में। ज्ञान दृष्टि की डुगडुगी और मोक्षमार्ग की आराधना
. कौक़ियाओं के मिचें।. `
इस जगत में कुछ भी छिपाने.योग्य नहीं ।
ह इस जगत में कुछ भी लेने देने योग्य नहीं ।
ॐ उस जगत सें कुछ भी संग्रह करने योग्य नहीं ।
„ .“ ये तीन वाते घोट २ कर इनका. रस ्रन्तरात्मा मे उता-
` -रैकाहै1 फिर भय नहीं रहेगा । मुनिमागे निभयता का मागें
है क्यों कि वरहा कु भी छिपाने का नदीं जड पदार्थो की लेन-देन
करते की न्ही- भौतिक पदार्थो का संग्रह् करनेका नहीं।है
` मूनीर्वर ! आपके आत्मा के प्रदेश-प्रदेश में निर्भधता की मस्ती
. छाई हुई है । उसके आगे स्वर्ग की मस्ती भी तुच्छ है ।
एकं ब्रह्मास्त्रमादाय विध्नन् मोहचम् मुनिः।
विभेति नव संग्राम शीर्षेस्थ इव नागरोट् ॥४॥ १३२ `
এ এ হলীক্কাখ _
. एक ब्रह्मज्ञान रूपी शस्त्र को धारण कर मोहरूपी सेचा का
संहार करते हुए.मुनि. सबसे आगे. रहे हुए उत्तम हाथी की भांति
भयभीत नदींहोते।, `.
| | श्लोक विवेचन |
` भय किस वात कां ? मनि ग्रौर. भय ?मूनि के पास ब्रह्म
. ज्ञान का शस्त्र होता है। यह शस्त्र मुनि को निर्भय रखता है ।
. मुनि अर्थात् रण के मोर्चे पर संघर्ष करता हुआ मदोन््मत्त
` ` हाथी । निर्भीक होकर संघर्षं करता हु्रा .उत्तम हाथी । उसे
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