ज्ञानसार भाग 2 | Gyansara Part-ii

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Book Image : ज्ञानसार भाग 2 - Gyansara Part-ii

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about मुनिश्री भद्रगुप्तविजयजी - Munishree Bhadrguptvijayji

Add Infomation AboutMunishree Bhadrguptvijayji

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
७ : को-भगाने की सामथ्यं है डुगडुगी की डुहड्डह्दाट और मिर्चो के धूए में। ज्ञान दृष्टि की डुगडुगी और मोक्षमार्ग की आराधना . कौक़ियाओं के मिचें।. ` इस जगत में कुछ भी छिपाने.योग्य नहीं । ह इस जगत में कुछ भी लेने देने योग्य नहीं । ॐ उस जगत सें कुछ भी संग्रह करने योग्य नहीं । „ .“ ये तीन वाते घोट २ कर इनका. रस ्रन्तरात्मा मे उता- ` -रैकाहै1 फिर भय नहीं रहेगा । मुनिमागे निभयता का मागें है क्यों कि वरहा कु भी छिपाने का नदीं जड पदार्थो की लेन-देन करते की न्ही- भौतिक पदार्थो का संग्रह्‌ करनेका नहीं।है ` मूनीर्वर ! आपके आत्मा के प्रदेश-प्रदेश में निर्भधता की मस्ती . छाई हुई है । उसके आगे स्वर्ग की मस्ती भी तुच्छ है । एकं ब्रह्मास्त्रमादाय विध्नन्‌ मोहचम्‌ मुनिः। विभेति नव संग्राम शीर्षेस्थ इव नागरोट्‌ ॥४॥ १३२ ` এ এ হলীক্কাখ _ . एक ब्रह्मज्ञान रूपी शस्त्र को धारण कर मोहरूपी सेचा का संहार करते हुए.मुनि. सबसे आगे. रहे हुए उत्तम हाथी की भांति भयभीत नदींहोते।, `. | | श्लोक विवेचन | ` भय किस वात कां ? मनि ग्रौर. भय ?मूनि के पास ब्रह्म . ज्ञान का शस्त्र होता है। यह शस्त्र मुनि को निर्भय रखता है । . मुनि अर्थात्‌ रण के मोर्चे पर संघर्ष करता हुआ मदोन्‍्मत्त ` ` हाथी । निर्भीक होकर संघर्षं करता हु्रा .उत्तम हाथी । उसे




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now