योग रहस्य | Yog Rahasy

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Yog Rahasy  by माहेश्वरी प्रसाद दुबे - Maheshwari Prasad Dubey

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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दी _झोडम्‌ | “उपोदघात कक कक कान. ! योग का लक्षण ज” घातुः से योग शब्द: सिद्ध होता है. जिस (धातु) के थे मिलना, जुलना आदि के हैं । युज्यतेंडसौयोग!'” । जो युक्त करे,: सिंलाने उसे योग क्रहते हूं । योगे दशेन के 'भाष्यकार महर्षि क्यास ने “योगस्समाधि” कहकर योग को संमाधि बतलाया है: जिसका ,भाव तय है कि जीवात्मा इस, डपलब्ध समाधि के द्वारा सच्चिदानन्द् स्वरूप न्रह्म का सात्तात्कार करे । भगयेद्वीता में श्रीकृष्ण ने “योग: कसेंसु कौशलम्‌* कदकर कम में ' छुशलता श्रौर:द्ता का जाम योग ढ़द्दराया है। - ; योग श्रौर पश्चिमी विड्ान्‌, कतिपय पश्चिमी श्रौरः पश्चिमी दृष्टिकोण रखने वाले विद्वानों ने योग को :ज़ित्त की,एरक्ाअते के दारा अंन्त:करण श्र शंरीर खे.पथक्त हुए झादमा कां साक्ात्काएं करना बतलाया है । परन्तु स्मक्टर रेले ने :योग़ के लज्नणा इसाअकार! किये हूँ:--“योग उस विया.को कदते हें जो मनुष्य के छन्तम्करण को इस योग्य. बचा चेवे कि'वद्द उच्च स्फुरणों के नकल दोता' हुआ संसार में . हमारे 1 (त) असली शब्द ये हैं: 56 ए०घटएक्ि0ा पिएं क. झोएफ' धठ डललापू घाट डिच्चों घ5 कं; 100५5 पिला 9, दुड शॉजडघि्लॉंट्त दिए, कफैक्तित शत कगालिट ( ऊड़िडएगान उपरकतातापा के. 10 के 2




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