एशिया की क्रांति | Asia Ki Kranti

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Asia Ki Kranti by श्री सत्यनारायण -Shri Satyanarayan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[২] चाहिए । उनके पास थुरोपीय राप्ट्रों जैसे अख-शल्र नहीं थे, यूरोपीय राष्ट्रों की घाक भी इतनी अधिक जम गई थी कि वे अजेय समझे जाने लगे थे । ऐसी स्थिति में युरोपीय राष्ट्रों का मुकाबला किस अकार से किया जा सकता था ९ परन्तु वह स्थिति अधिक दिनों तक नहीं रही | १९०० का रूस- जापान-युद्ध उनकी जागृति का पौफट था । इस युद्ध ने एशियायी राष्ट्रों की आँखें खोल दीं। यहाँ के सभी राष्ट्र समझने छंगे कि जो कार्य जापान ने किया है । वे सभी करके दिखला सकते हैं । इस युद्ध में रूस की हार से.युरोपीय राष्ट्रों के श्रति उनकी अजेयता की भावना जाती रही। सभी एशियायी राष्ट्रों के भीतर आत्मविश्वास का भाव आ गयां ! वे सास्राञ्य- बादियों के चंगुल से छूटने के लिए घोर परिश्रम करने लगे। भारतवर्ष में क्रान्तिकारी दुरू स्थापित हों गया । अंग्रेज़ों के प॑ंजे से भारतवर्ष को मुक करना उसका उदेश था! तुकों में तरुग तुर्का का एक दुक कायम हो गया जिसने तत्कालीन तुर्की सुल्तान अब्दुल हमीद को गदी से उतार कर वेद्य शासन की स्थापना की । फारस के राष्ट्रीय दल ने थुरोपीय पर- तंत्रता की जंज़ीर को इसी समय तोड़ डाकने का विचार निश्चित कर लिया । वहाँ की मजलिस ने शाह को गद्दी से उतार दिया और नई मज- लिस उद्घादित की । चीन में 'कुओंमिग्टॉंग! नाम की एक गुप्तसमिति कायम हो गई । उन रोगो ने वहोपर मंचू-शासन का अन्त कर दिया और ग्रजातंत्र शासन की स्थापना की । एशिया के छोटे-छोटे राष्ट्रों में भी क्रान्ति की लहर काम करने ऊझगी थी। साम्राज्यवादी राप्ट्रों ने दमन का चक्र चलाया । क्रान्ति दबी नदी परन्तु, दमन के कारण उसे झ्षगड़ते हुए आगे वदना पडता था । दसी समय. महाप्तमरे की तोपों के मीपण गर्जना ने सभी का ध्यान अपनी ओर आक्ृष्ट किया।, तुर्की को छोड़कर बाक़ी सभी एशियायी राष्ट्रों ने मित्र-राष्ट्रों को सहायता पहुँचाई। ये सभी रपट समस्त रहे थे कि आपत्तिकाल से सहायता पहुँचाने से मित्र-राष्ट्




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