कर्मविपाक -प्रथम कर्म ग्रन्थ | Karamvipa - Pratham Granth

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Karamvipa - Pratham Granth  by ब्रह्मचारी सीतलप्रसाद जी - Brahmchari Seetalprasad Ji

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(११) थी । নী अब उह संगमे बेटी व्यवहार ओर खानपान चाद है बह ग्रापके ही अति परिश्रमका फल है । मापने से ० १९७७में सहकुटुम्ब तीेयात्रा करते हुए सेमरखेड़ीके मदिरो विमान, छत्र, चेमर, छड़ीमारा भादि उपकरण पदान किमे ये। चौरईमें भी शिखरबंद मंद्रि बनवाया है और संगमरमरकी जड़ाऊ नेदी भी लगबाई है | व यहां दो समय प्रतिष्ठा कराई इस कारण ममाजने आपको सेठनीकी पदवीसे भूषित किया है। आपका समाने अच्छा सन्मान है । आप इस प्रांतके समान- मान्य अ्रे्ट पुरुष दै। आपका लक्ष विशेष ঘম और समान सगठनकी ओर रहता है। आपको दिगम्बर नेन धममसे विशेष प्रेम है तथा शक्तचनुसार इमेश्ा संस्थाओंको तथा दीन दुखियों आदिको दान करते रहते हैं व धामिक कार्योमें संदेव देते रहते ह । गभी हारम आपने रल्तिपुरके वेल्यारुयते सहायता दी थी तथा राजगृीके दिगम्बर जैन मेदिरमे भी सहायता पहुचाईं । वड़नगरमें अनाथ बालकोके रहनेके लिये १ कोठरी बनवानेके लिये द्रव्य दिया है । जब मुनि श्री सूर्यक्ागर नी महरानका आगमन सिबनीमें हुआ था तव उनके समक्ष भर्हिक्ता प्रचारणी सस्था षोढी गई थी, निमे भापने २००) रु०्कादान दियाथा जीर वह सेम्था नमी तकं चाद्ध है। यह सस्था देवी देवताओं पर बलिद्दिसा रोकनेका प्रयत्न करती रहती दै। आपने अपने यहांके मंदिरोक्री योग्य व्यवस्था कर दी है। जिते १ मोजा, चजुरत रा०(-)४ और खेती १३० ०)की; १ बाड़ा कुंड़ाके मंद्रोको भमराई दे दी है। निससे मंदिरोंका काम सुचारु रूपसे चलता रे । इसका




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