में इनका ऋणी हूँ | Mein Inaka Rini Hun

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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छोकमान्य तिलक १५ सा हो गया था कि काग्रेंस के अधिवेशन में तिछक महाराज के सामने कोई नेता न 5हर राकेगा। जो प्रस्ताव वह पेण करेंगे, वही स्वीकार किया जायगा । लोकमात्य तिवकक के उस जलूस की अनेक स्मरणीय चीजों में से एक विशेष चीज स्पय लोकमान्य वी गभीर मुद्रा थी, जो प्रत्येक वारीकी से देखनेवाले दर्शक पर प्रभाव उत्पन्न करती थी | चारो ओर कोलाहूछ का तूफान उमड़ रहा था । पूछो और मान्शओं से गाडी भर गई थी। स्थान-स्थान पर गाटी रोककर आरती की जा रही थी और भवत জীন तरह-तरह की भेंट देकर भवित वा प्रदर्शन कर रहे थे। चारों ओर यह सब-कुछ था, परतु छोकमान्य तिलक ফী मूति मानो निइचल होकर बैठी थी । जनता के कोछाहल से उनके चेहरे पर न विक्षोभ की झलफ दिसाई देती थी, न जनता के सत्कार-प्रदर्शन ये होठों पर मुस्कराहुट दोड़ती थी । उनके गभीर तेजस्वी नेत्र और स्थिर निशचर द्वोठ न तूफान में हिलते थे और न प्रभात के पवन से खिलते थे। उनमे मातृभूमि की पराधीनता की भावना मानो फौछाद बनकर बैठ गई थी । जब उन्हें मांडले के जेल में अपनी जीवन-धमिनी पतली की मृत्यु का समाचार मिला ओर उनके ब्रांमू नही निकले, तो किसोने पूछा, “ऐसे दुखद समाचार से आपके आंसू बयों नही निकले ?” इस प्रशन का लोकमान्य ने यह चिरस्मरणीय उत्तर दिया था, मेरे पास बहाने के छिए कोई आयसू नहीं बचे, मैं उन सबको अपनी मातृभूमि के छिए बहा चुका हूं ।” प्रतीत होता है कि वे आंसू अपने साथ होठो की मुस्कराहुट को भी बहा छे गये थे। सार्वजनिक रूप में तिलक महाराज के पाम न आयसू थे और न मुर्कराहट । वहां थी केवल कठोर कतंन्य की भावना, जिसका पालन करने में वह किसी एक क्षण के छिए भी नहीं हिंचकिचाने। छोकमान्य तिलक का चेहरा एक क्रोतिकारी का आदर्श चेहरा था, वहा श्रिय-अप्रिय की कोई भावना नहीं थी । केव घर्मं के पालन की दृढ़ शतिज्ञा थी। काग्रेस के मंच पर वैसा दृढ़ क्लांतिकारी चेहरा न उन दिनों दिखाई देता था, और न क्षय दिखाई दिया है। हां, उसरी थोड़ी-सी झछक सरदार वह्क्ूमभाई पटेल के चेहरे पर दिखाई देती थी 1 सब बातते थे कि छोकमान्य तिलक अड़नेवाले आदमी थे | जीवन-




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