महात्मा गाँधी | Mahatma Gandhi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(~ महात्मा गाँधी के अत्याचारों से परेशान थे। उन लोगों की दुकानें लूट ली जाती थीं, घर जला दिए जाते थे, लोगों को निरपराध द्वी मार डाला जाता था | यह सभी अन्याय गोरी सभ्यता के नाम से हो रहे थे। १८६३ में गाँधी जी प्रियोरिया एक मुऋदमे के तिलतधिले में बुलाए गए । वे दछतिण अ्रफ्रीका की स्थिति से परिचित न थे पर आरम्म ही से उन्हें नए-नए अनुभव होने आरभ्म हुए। ऊँचे वंश के हिन्दू निन्‍्होंने एशिया ओर योरप में सबंत्र अच्छा स्वागत पाया और जो अंग्रेजों को सहज मित्रता की दृष्टि से देखते थे, वही गाँधी जब यहाँ श्राए तो अचानक ही परिस्थिति के वैषम्य से एकदम चकित हो उठे । नेटाल ओर विशेषकर डच ट्रान्सवाल में उन्हें लोगों ने होटलों के बाहर निकालकर फेंक दिया और उन्हें पीटा भी। उन्हें इतना नेराश्य और दुःख हुआ कि वे तुरन्त ही भारत वापस लोट आते पर मुकदमा होने के कारण वे साल भर के पहले भारत वापस नहीं आ सकते ये । इन बारह महीनों में उन्होंने आत्म नियंत्रण की कला सीखी पर बराबर इन बारहों महीनों के बीतने की ही राह देखते रहे | पर जब वे शअ्रफ्रीका छोड़ने को थे तभी उनको मालूम हुश्रा कि दक्षिणी अफ्रीका की सरकार भारतीयों के वोट देने के अधिकार को छीनने का बिल पास करने जारहीदहै | श्रफीकाके भारतीय श्रसहायये श्रौर श्रपनी रक्षा करने में असमथ थे | उनमें कोई संगठन नहीं था और उनकी आत्माएँ दलित द्वो चुकीं थीं। उनका कोई नेता नहीं था जो कि उन्हें पथ-प्रदशन कराता। गाँधी जी ने सोचा कि श्रफ्रीका को ऐसी स्थिति में छोड़कर भारत जाना अच्छा नहीं । भारतीयों के प्रश्न को उन्होंने श्रपना ही प्रश्न समझा ओर उसी में तन-मन-धन से अपने को जुटाकर वे अ्रफ्रीका ही में रह गये। अब गवनमेण्ट की पाशविक बबर शक्ति को एक अ्रजेय आत्मा की आध्यात्मिक शक्ति से सामना करना पड़ा | गाँधी जी वकील ये




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