प्यासा और बे पानी के लोग | Pyaasa Aur Be Paani Ke Log
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
16 MB
कुल पष्ठ :
181
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१२ प्यासा और बे पानी लोग
अपनी आँखों के सामने “थी डाइसेन्शल” फिल्म बिता रंगीन चश्से
के देख रहा था ! आवाज़ें और सामने की लीपापोती हुईं भविष्य की तस्वीरें !
धवडाकर मेने सिर भटक दिया | नीली वरदी ने बाहर की एक गुमठी-
नुमा दूकान से दो प्याली चाय लाकर रख दी थी। चाय पीते हुए बंगाली
बाबू ने फिर अपना सेंटीमेंटल भाषण शुरू किया--
४हमरा के जब ई शर्विश ज्वाइन किया तब हम भी बड़ा-बड़ा शपना
लेकर हियाँ आया था। हमरा श्रैँकिल बोला था जे हियाँ बड़ा-बड़ा
पोशीविलटीज है, मानूश काबील होए! तो जे डी० एस० तक होने शकता
है | पर शाला काबील शाबील किछू नेंई ! शाब पोइशा का खेल है !”
उनकी बातें ऐसी नहीं थीं जो मेरी समझ के बाहर रहीं हो !
क्लास में तो मैं इससे भी टेदरी बातें समझने के लिए मशहूर था ! फिर
भी मैंने आख़िरी ज्ञोरदार तक दिया जिससे वे डर कर ही मेरी बात
मान जाँय ! |
“बात यह है बंगाली बाबू ! कि में यह भी मान लें कि आप जो कुछ `
कह रहे हँ बह सव ठीक है, फिर भी आपको पुलिस का डर तो होगा !
आजकल एंटीकरप्शन वाले सब जगह घूमते रहते हैं । कहीं एक दिन
आकर किसी ने दब्ोच लिया तो हम सब के सब कहीं के न रहेंगे |”
मेरी यह दलील घुनकर बंगाली बाब फिर बाँह उठाकर बगल खुजलाते
हुए बड़ी ज़ोर से हँसे । उनके पोपले गाल हँसी के फ़ौवारे से उसी तरह
फूल गए, जैसे एकाएक किसी भूकम्प से कैसियन सागर मँ पामीर का प्लेये
निकल आए, | उनकी इस वेतरह हँसी से मैं घबड़ाया हुआ था; सोच रहा.
था कि मैंने सचमुच कोई बडी बचकानी दलील दी है। बंगाली बाब बोले--
“वा रे गिसैश वाव बाह ! ठीक है, ठीक है। तूम नया-नया यनि-
बशिटी से आया है| ˆ अच्छा शुनो--एक किस्सा शुनो ।
“बहोत दिन पोहिले का वांत है जे हमरा कलिकता में एक ठो शेठ
था। ओई को एक दिन मोलाई खाने का शौक हुआ । शे बोला जे ईैशका
आश्ते एक ठो नौकर होना चाही जे हमको रोजीना दुइ आना का मोलाई
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