प्यासा और बे पानी के लोग | Pyaasa Aur Be Paani Ke Log

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Pyaasa Aur Be Paani Ke Log  by केशव चन्द्र वर्मा - Keshav Chandra Varma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१२ प्यासा और बे पानी लोग अपनी आँखों के सामने “थी डाइसेन्शल” फिल्म बिता रंगीन चश्से के देख रहा था ! आवाज़ें और सामने की लीपापोती हुईं भविष्य की तस्वीरें ! धवडाकर मेने सिर भटक दिया | नीली वरदी ने बाहर की एक गुमठी- नुमा दूकान से दो प्याली चाय लाकर रख दी थी। चाय पीते हुए बंगाली बाबू ने फिर अपना सेंटीमेंटल भाषण शुरू किया-- ४हमरा के जब ई शर्विश ज्वाइन किया तब हम भी बड़ा-बड़ा शपना लेकर हियाँ आया था। हमरा श्रैँकिल बोला था जे हियाँ बड़ा-बड़ा पोशीविलटीज है, मानूश काबील होए! तो जे डी० एस० तक होने शकता है | पर शाला काबील शाबील किछू नेंई ! शाब पोइशा का खेल है !” उनकी बातें ऐसी नहीं थीं जो मेरी समझ के बाहर रहीं हो ! क्लास में तो मैं इससे भी टेदरी बातें समझने के लिए मशहूर था ! फिर भी मैंने आख़िरी ज्ञोरदार तक दिया जिससे वे डर कर ही मेरी बात मान जाँय ! | “बात यह है बंगाली बाबू ! कि में यह भी मान लें कि आप जो कुछ ` कह रहे हँ बह सव ठीक है, फिर भी आपको पुलिस का डर तो होगा ! आजकल एंटीकरप्शन वाले सब जगह घूमते रहते हैं । कहीं एक दिन आकर किसी ने दब्ोच लिया तो हम सब के सब कहीं के न रहेंगे |” मेरी यह दलील घुनकर बंगाली बाब फिर बाँह उठाकर बगल खुजलाते हुए बड़ी ज़ोर से हँसे । उनके पोपले गाल हँसी के फ़ौवारे से उसी तरह फूल गए, जैसे एकाएक किसी भूकम्प से कैसियन सागर मँ पामीर का प्लेये निकल आए, | उनकी इस वेतरह हँसी से मैं घबड़ाया हुआ था; सोच रहा. था कि मैंने सचमुच कोई बडी बचकानी दलील दी है। बंगाली बाब बोले-- “वा रे गिसैश वाव बाह ! ठीक है, ठीक है। तूम नया-नया यनि- बशिटी से आया है| ˆ अच्छा शुनो--एक किस्सा शुनो । “बहोत दिन पोहिले का वांत है जे हमरा कलिकता में एक ठो शेठ था। ओई को एक दिन मोलाई खाने का शौक हुआ । शे बोला जे ईैशका आश्ते एक ठो नौकर होना चाही जे हमको रोजीना दुइ आना का मोलाई




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