अतीत के चल चित्र | Aateet Ke Chalchitra

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Aateet Ke Chalchitra by महादेवी वर्मा - Mahadevi Verma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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चल-चित्र ] की देहली पर बेठकर किवाड़ से सिर टिकाकर निश्चेष्ट हो रहा। उसे भिखारी समभर जब उन्होने निकट जाकर प्रभ्र किया तब वह “€ मताई ए रामा तो भूखन के मारे जो चलो: कहता हुआ उनके पेरों पर लोट गया | दूध मिठाई आदि का रसायन देकर माँ जब रामा को पुनर्जीवन दे चुकों तब समस्या ओर भी जटिल हो गईं, क्योंकि भूख तो ऐसा रोग नहीं जिसमें उपचार का क्रम टूट सके । वह बुन्देलखण्ड का ग्रामीण बालक विमाता के अल्या-- चार से भाग कर माँगता खाता इन्दौर तक जा पहुँचा था जहां न कोई श्रपना था और न रहने का ठिकाना | ऐसी स्थिति मे रामा यदिमां की ममता का सहज ही अधिकारी बने बेठा तो आश्चर्य क्या उस दिन सन्ध्या समय जब बाबू जी लौटे तब लकड़ी रखने की कोटरी के एक कोने मँ रामा के बड़े-बड़े जूते विश्राम कर रहे थे ग्रौर दूसरे मे लम्बी लाठी समाधिस्थ थी | और हाथ मुँह धोकर नये सेवात्रत में दीज्ित रामा हक्का-बक्का सा अपने कर्तव्य का अर्थ और सीमा सममकने में लगा हुआ था | बाबू जी तो उसके अपरूप रूप को देखकर विस्मय- विमुस्ध हो यए। हँसते हँसते पूछा---यह किस लोक का जीव द ध रा




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