दादा काॅॅमरेड | Daadaa Kaanmaraid

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Daadaa Kaanmaraid  by यशपाल - Yashpal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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दुविधा की रात ११ लोग जेल में थे । श्राज हमें दूसरे मुकद्दमे के लिये श्रमृतसर ले जाया जा रहा रहा था । हमारे साथियों ने पुलिस पर श्राक्रमण कर हमें छुड़ा लिया । कोई जगद्द न दोने से रोशनी देख में यहाँ श्रागया हूँ । यदि मैं योंही भटकता फिरूं तो जरूर पकड़ लिया जाऊँगा । द्राप जानती हैं मुझे कम-से-कम बीस बरस जेल में रखा जायगा श्रौर श्रब तो शायद फाँसी हो जाय सुबह सूरज निकलने मे पहले ही में चला जाउऊँगा । देखिये मेंने किसी का कुछ बिगाड़ नहीं । केवल देश की स्वतंत्रता के लिये हम लोग यत्र कर रहे थे । यशोदा कुछ कह न सकी । उसकी घबराहट अभी दूर न हो पाई थी । उचित-श्रनुचित क्तव्य-भ्रक्तव्य वह कुछ न समभक सकी । उसे केवल समभ द्राया--मोत से भागता दुश्ा एक व्यक्ति जान बचाने के लिये उसके पेरो के पास शा पड़ा है । भय के श्रचानक धक्के से जो मूढ़ता उसके मस्तिष्क पर छा गई थी उसका धघुन्द शने -शने साफ़ होने लगा । हाथो की उँगलियाँ उसी तरह दबाये वह उस नवयुवक की श्रोर देख रही थी । जिस व्यक्ति से वह इतना डर गई थी वही गिड़- शिड़ाकर उससे प्राणों की मिक्षा माँग रहा था । श्रपनी निष्पलक श्रॉँखों के सामने उसे दिखाई दिया--बहुत से लोग तलवार-बंदूक लिये उस नवयुवक को मार डालने के लिये चले श्रा रहे हैं । वह उसके पेरों में उसके श्राँचल में दुबक कर जान बचाना चाहता है ।--श्रब भी वह कुछ न बोल सकी । केवल निस्तब्घ उस शरणागत की श्र देखती रही । वह पिस्तौत जो कुछ देर पहले उसके माथे की श्रोर तना हुश्रा था अब युवक के हाथ में नीचे लटक रहा था । यशोदा को चुप देख नवयुवक एक कदम समीप आरा धीमे स्वर से बोला-- मैं यहीं बेठा रहूँगा । यशोदा ने एक साँस ले उसकी श्रार ध्यान से देखा मानों वह कुछ समभ नहीं सकी । युवक ने यशोदा को विश्वास दिलाने के लिये फिर




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