मोक्षमार्ग प्रकाशक की किरणे | Mokshamarag Prakashak Ki Kiranen
श्रेणी : धार्मिक / Religious
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
208
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)प्रथम भयाय ४.
की बात ग्राती है वहाँ मोलमाग वा प्रतिपादन क्सि प्रदार
हुमा ? सम्यग्दशन के बिता तो माक्षमाग होता ही नहीं ।
उत्तर --भ्ज्ञानी को पुमराग करने वे लिये कहा हो वहाँ
राग का प्रयोजन नहीं है कितु बुदेवादि की मान्यता से
बचाकर सच्चे देव, गुर, धम की मायता कराने का प्रयोजन
है । वहाँ पर तीग्र मिथ्यात्व भ्रगत मद हुआ है-इस श्रपैक्षा
मे उते व्यवहार मोक्षमाग कहा जाता है । वास्तव में तो
सम्यक्दन, नान, चारित्र ही मोक्षमागहै राग मोक्षमाग
नहीं है, भौर उस राग से घम नही है क्रतु নাহি
की मा यता में जो तीत्र मिथ्यात्व है वह वीतरागी बैच को
मानने से मद द्वीता है, और सद् निमित्त होने से सत् वो
समभन का प्रवकाश है इससे उपचार स उस मोक्षमाग वहा
जाता है| सन््चे देव गुर रास्व यहु बतल्लात हैं कि है रातमन् ।
तुम स्वतत्र हो, पूण भानस्वरूप हो, राग तुम्हारा स्वरूप
नही है ।
ज्ञानियों का उपदश जीवों को सरल रीति से अथवा
परम्परा से मोकारं मे लगाने के लिये दै।
चानियों का उपदेश जीवा क कल्याए के लिये होता है ।
कभी कोई जीव मोक्षमाग समभने की योग्यतावाला नही हो
तो जिससे राय घटे वस्ता उपदंश उस्ले देते हैं। जस्ते--
कोई मासाहारी भील कि ही गम्रुनिराण के पास उपदेश धुनने
के लिये बठ गया, भ्रव यदि श्रीमुनि उस्ते मोक्षमाय का
उपदेश देने लग जायें तो उसे कुछ भी समर में नही
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