कर्मक्षेत्र | Karmakshetra

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पंडित शिव सही चतुर्वेदी का जन्म मध्य प्रदेश के सागर जिले के देवरी नामक गांव में हुआ था | इन्होने कई पुस्तकें लिखीं किन्तु समय के साथ साथ उनमें से कुछ विलुप्त हो गयीं | ये एक अमीर घराने से थे और बचपन से ही कला में रूचि रखते थे |
इनके वंशज आज जबलपुर जिले में रहते हैं और शायद ये भी नहीं जानते कि उनके दादाजी एक अच्छे और प्रसिद्ध लेखक थे | इनके पौत्र डॉ. प्रियांक चतुर्वेदी HIG 5 शिवनगर दमोहनाका जबलपुर में निवास करते हैं |

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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आस्मदाक्तिकी पहिचान ! १ जाय ओर पावित सीसोदिया कुलको कलंक न रुग जाय यही चिन्ता उनको निरंतर बेदुना पहुँचाती रहती थी । उनको वनवासमें कई बार शन्ुओंके भयसे अपने बाल वच्चोंकीं भिल्लानेयोंके साथ जंगलके अंधकारयुक्त गुप्तस्थानोंमें छिपा देना पढ़ां । फल ओर झरनोंके पारनीसे अपनी भूख और प्यास चुझानी पड़ी | ऐसा कहा जाता है कि एक दिन उनको पॉँच चार परोसी हुई थाली छोड़कर एक ठोरसे दूसरे ठोरकों भागना पड़ा था; पर तो भी उस वीर पुरुषका छृद्य न डिमा। यह साधना कुछ कम कठोर नहीं है। केचल मुगल-सम्राटके साथ वे मिन्नता करना स्वीकार कर छेते, तो वे राजाओंके योग्य सुख ओर स्वतंत्रतासे रह सकते थे । उन्होंने अपनी इच्छा और स्वतंत्रताकी प्रेरणासे उज्ज्वल यशके लिए यह संन्यासनत घारण किया था ओर उसमें सिक्धि-छाम करनेकी हद आशासे वे इस कठोर साधनामें लंगे हुए थे।हम पूछते हैं कि इसका मूल कारण क्या है! इसका उत्तर यह हे क केवर इट्‌ परतिन्ञा ओर अनिवार्य्य इच्छाशक्ति 1 इसके सिवा इसका ओर दूसरा कारण क्या हो सक्ता है ? आमभमें जलानेकी शक्ति है । इस शक्तिकी सहायतासे कोई अच्छा काम करता है और कोई बुरा | तत्त्ववेत्ता लोग अभिकी सहायतासे माफ उत्पन्न करके सैकर्दों कारखाने चलाते हैं, अग्निहोत्री आह्मण उसकी सहायतासे यज्ञ कर्म करते हैं और दुष्ट तथा पाजी लोग उससे घरोंको जलाकर सैकड़ों लोगोंको दरिद्र और निराघार बना देंते हैं-उन्हें बरबाद ক ভাতট हैं । इससे मलीमोॉति जाना जाता है कि शक्तिका सहुपयोग ओर इुरुपयोग उसके प्रयोगके उद्देश्यके ऊपर निर्भर रहता है । अब हम -इच्छाशक्तिका एक दूसरा. उदाहरण देते हैं । उस उदाहरणमें अच्छेपनका अमाव रहनेपर मी इच्छाश्चक्तिकी प्रता दिखाई देंगी। यह तामसी -इच्छादाक्ति है । हम जिसके विषयमे कह रहे हैँ वह॒ भारतवधेका एक




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