साहसी डाकू एक अंग्रेजी उपन्यास | Sahasi Daku ek Angregi Upanyas

Sahasi Daku  ek Angregi Upanyas by दुर्गाप्रसाद खत्री - Durgaprasad Khatri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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दुसरा वयान 1 १३ यमन देख श्रार डिक का भ्ागता देख अपनी बन्दूक उसके ऊपर छेड़ी मगर डिक उनकी तरफ देखकर हूँ सा कर अपनी घाड़ी तेज कर उनको नजरों से गायब हे गया ॥ उनमें से एक आदसी ने जेरी का जमीन से उठाया उसको बड़ी खराब हालत हे गई थी । तलवार बीच में से दे टुकड़े हा गई थी ओर टोपी उछल कर कुछ दूर पर एक गड़हें में जा गिरी थी जिसमें पानी भरा हुआ था। जेरी की पैशाक दूलदूल से बिल्कुल लय पथ हे ग्द थी और उसका मुँह भी बिल्कुल कीचड़ से रंग गया था। जेरी के दा नें साथी उसकी यह हालत देख काशिश करने पर भी हँसी न रोक सके। जेरी इसपर और की बिगड़ा मार गुस्से के साथ बेला बिल्कुल बड़िरे है तुम्हारे अफसर पर क्या आफत आई इसका कुछ खयाल भी नहीं आरखें बन्द किये बढ़े जाते थे और अब हँसते है। । उन मेंसे एक बाला आखिर सामला क्या है आपकी यह हालत क्या हा गढ़ ्रार वह आदमी कैन था जो घोड़े पर सवार मागा जाता था ? जेरो ने सब हाल कहकर कहा इस कसू- बख़ ने सुफ़े बहुत काया है में भी इसके पकड़े बिना कभी नछाडूंगा चाहे मेरो जान हो चली जाय । इसके बाद एक आदमी जेरी की टापी गड्ढे में से निकालने गया मगर वह इतनी खराब हागई थी कि जेरी ने उसके पहिनना नापसन्द किया जार उसी हाठत से अपने दाना साथियों के साथ स्टेन को तरफ चला गया ॥ इधर डिक फिर उसी सराय में पीटर के पास चला गया और उससे सब हाल कहा । वह भी सुनकर बहुत हँसा जार




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