सरल राजस्व | Saral Rajswa

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Saral Rajswa by पं दयाशंकर दुबे - Pt. Dyashankar Dube

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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दूसरा अध्याय सरकारी व्यय के सिद्धान्त उन्नाव पहुँचकर सोदन को बहुत श्रानन्द प्रात हुआ | महीनों बाद वहद झपने घर शाया था । जिस मुददल्ले में उसका घर था, उसमें, सड़क के किनारे पर ही, एक नयी कोठी बन गयी थी | जिस समय वह घर से प्रयाग गया था, उस समय वहीं एक मकान बिल्कुल खैंडहर को दशा में गिरा पड़ा हुआ था । कोठी देखकर उसे बड़ा श्राश्चर्यर्य हुआ । उसके मन में उसी समय एक विचार उत्पन्न हुआ । उसने सोचा--बड़े होने पर, जब मैं यथेष्ट रुपया पैदा कर लगा, तब ऐसी दी एक सुन्दर कोढी मैं भी बनवा ऊँगा | ं बिहारी बाबू बैठक में पलैंग पर बैठे हुए पान लगा रहे थे, मोहन सड़क की थोर देख रदा था । बि्दारी ने पान खाते हुए लक्ष्य किया कि मोइन कुछ सोच रहा है | तब उन्होंने पूछा--मोहन, तुम क्या सोच रहे हो ?




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