विज्ञान | Vigyan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
124 MB
कुल पष्ठ :
439
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१४ विज्ञान
एाशुज परमांगनेत € 60659851000 0610290-
8०79 (6 ) । इसके चूण वा घोल का व्यवहार कि-
या जाता है । इसका ५४% घोल क्षत में प्रत्येक दिन
( दिन में एक बार ) तब तक लगाया ज्ञाता है ज्ञब
तक कज्ञत पर एक काली पपड़ी नहीं पड़ ज्ञाती। इस
पपड़ी को हटा कर पुनः यही क्रिया कई सप्ताह
तक की जाती है । अथवा चूर्ण को হাল-অব্য
छिड़क कर, कुछ देरके उपरान्त इसे धो डाला
जाता है तथा ज्ञत-स्थानमें कोई शांतिदायक पदाथ
लगा दिया जाता है ।
(४) नवज्ञात नेल ( 1९०६०९०६ 100116 )
यह मुख, नाक इत्यादि की श्लैष्मिक कलाओंकी
चिकित्साके लिए बहुत डपयुक्त है | इसके लिए
रोगीको सधक नेलिद की बड़ी २ मात्राये' खिलाई
जाती ह तथा नासा रन्धोमे ( क्षठ-स्थानमे ) उद्-
जन परोषिद् ( प्र $0दन0-ल०१८ ) मे सिंगी
हुई रूई की बत्तियांको रख दिया ज्ञांता है। नासा
रन्धो को श्लेष्मिक कला से निकलता हुआ
संधक-नेलिद् उदजन-परौषिदके साथ मिल जाता
है जिससे शुद्ध नेलिनकी उत्पत्ति होती है जो
यद्तमा्तत पर श्राक्रमण करता है ।
भाग ३५
उपयुक्त सभी रोतियां किसी पकौ रोगीके
लिप उपयुक्त नदीं होतीं । श्रस्तु, जो जिसके कामक
हो सके, उसीसे काम क्लेना उचित है । कभी कभी
ऐसा होता है कि यदि एक रीति से लाम नहीं
हुआ तो दूसरे था तीसरे प्रकार की चिकित्सा की
जाती है ।
१४ चक्ष-यक्ष्मा ।
इसके रोगी ओर भी कम मिलते हैं। प्रायः
१००० चल्लु-रोगियोमे चद्लु-यक्ष्मा-रोगियाँकी सं-
झुया की १ से ३ तक हो सकतो हैं अभरन नेत्र-
श्लेष्पिका वा कनीनिका पर यक्ष्माकीटाणुओंका
कुछ प्रभाव नहीं पड़ता । श्रस्तु, प्राथ।मक चत्त-यक्ष्मा
का सम्भावना बहुत कम रहती है | माध्यमिक रूप
से यक्ष्मा का आक्रमण सम्भव है । ङिन्तु बहुत से
यक्ष्मा-च्तत वास्तव में इनही कीटाणुओं द्वारा आ-
क्रान्त रदते हैं या नहीं यह विवाद्-प्रस्त है ।
&डावटर वेचरनाथ भादुढी হুল মী (10019
1९१८०) 7২৪০০107015 1925 ),
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