कृति और कृतिकार | Kriti Aur Kritikar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१२ “दिल्ीपुखः इसे 'प्रद्ध कया” मानते ये । इसमे जो अपूर्ण ता वा श्रामास मिलता है सम्मवप्त. ধহী शुक्तजी दी मान्यता का द्ारण रहा हो 1 भ्रपूर्णता का ध्राभास तो इसलिये होता है,कि इसको श्रात्मवया ने कम में देाने का उपक्रम किया गया है 1 बहने वी प्राव- इयकता नहीं कि आने वाला प्रतिक्षण आत्मक्या को अधूरों सिद्ध कर सकता है। स्वर्यं सम्पादक ने यह कहकर कि 'दाखणमद्र की कादम्दरी को भांति यह হ্যলা भी धपूएं है,” पाठ्या के अ्म के लिए पर्याप्त वारण प्रस्तुत कर दिया है । युक्तजी वैः त्रम कराए कारण यह भी हो सदठा है। वास्तव में प्रपनी शत्ती में यह इृति प्रधुरी क्या नहीं है । अपधूरी-जेसी प्रतीत होना ठो इसकी एक विद्येपद्रा है, एक दुनूहल की सृष्टि है जो इसको अधिक साहित्यिक सिद्ध करती है । आत्मकथा या उपन्यास यदि वाणमट्ट वी प्रात्मक्या इतिहास नहीं, जीवनो नहीं धर अ्रद्ध क्या भी नहीं सो पया 'म्रात्मक्पा/ ही है जेसा कि उत्तके नाम से प्रतीत होठा । यह रचना उत्तमपुर में है ओर लेखक प्रौर नायव में प्रभेद नी दिखाया गया है! इस शेत्री ने पर्दे के पीछे इस कृति को 'प्रात्मक्षा? के प्रतिविम्द में व्यक्त किया गया है, पर वास्तव में यह प्राउमया नहीं है, वर्षो इसके विरोध में झन्य तवों के साय एक यह भी है वि उसमें লাবনাদী সী কনা না ময় पुट है । साथ ही इसमें रख-योजना का प्रयल प्रौर्‌ त्रिप उदेश्य या लक्ष्य थी प्रेरणा भी है । इस रचना में जो वर्णन दिये गये हैं उनमें बटूत-नो रस-निष्पत्ति की हृष्टि से ही प्रायोजित जिये गये हैं । घटनाएं साहित्यिक रूपावस्तु के चौखटे में व्यवस्त्यित हैं। वर्तमान गुग की अनेक समस्याप्रों की इतिहास के फ्रेम मेँ जडकर सच्चा-जेसा दिखलाने वा प्रयत्न भी क्या गया है, पर इतिहास उन सदक्ा साक्षी नहीं है 1 चरिव-चित्रण के प्रति माव[त्मव प्रयास भी प्रात्मक्या' को प्रात्मवया सिद्ध करने में दाघक होता है। इसके प्रतिरिक्त कयामुख भ्ौर अपंहार में जो गलत खिले हैं उनसे नी इस ভুরি का ग्रात्मकपा हौता प्रसिद्ध होगया है। पाठ्यों शोर प्रालोवकों के खामने इस असलिदय प्रयोग के वारण अ्रक्सए निर्णय छा प्रश्न खड़ा हो जाता है प्रश्न यह है दि प्रात्ममणा शोर उपस्यास में से इसे दया হা লাই? उपर संवेत किया जा चुदवा है कि आत्मद या के निर्णय का मुताघार उसका सेखड़ होता है 1 वड स्त्रयं ऋपने जोवन का व्योरा देता है। उपन्यास का लेखक ग्रात्मेतर किसी नामक वे सस्वप में उपक्ो रघना वराण है, चसे द्वी वह वाया या दिस्झी अन्य पात्र को ग्ात्मा में प्रच्दत और परोल रूपसे प्रविष्ट रहे । प्रात्मकया वी भाँति वह एपस्यास में ऊपने जीवन वो क्या प्रत्यक्ष रूप से नहों कह सदा 11 ण, उपस्यात वी श्रपैज्ञा आत्मकथा का छिखना बहुत सरव है वर्योढि उसका काई अं भ




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