जैन जागरण के अग्रदूत | Jain - Jagaran Ke Agradoot
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
18 MB
कुल पष्ठ :
628
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about अयोध्याप्रसाद गोयलीय - Ayodhyaprasad Goyaliya
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)ये ठेद़ी-मेद़ी लसर
; ठेढ सेट ( रेखाएं
हमारे यहाँ तीय॑ड्डारोका प्रामाणिक जीवन-चरित्र नही, आनार्योके
कार्य-कलापकी तालिका नहीं, जैन-सघके लोकोपयोगी कार्योकी सूची
सही, जैन-सम्राटो, सेनानावकों, मत्रियोंके वल-पराक्रम और शासन-
प्रणालीका कोई लेखा नहों, साहित्यिको एवं कवियोका कोर्ट परिचय
नहीं। औौर-तो-और, हमारी आँखोंके सामने कल-परसों गुज़्रनेवाली
विभूतियोका कही उल्लेख नहीं, और ये जो दो-चार बडे-बूढ़े मौतकी
चौसटपर खडे है, इनसे भी हमने इनके अनुभवोको नहीं सुना है, और
आायद भविष्यम दस-पाँच पीढीम অন্ন लेकर मर जानेवानों तकके लिए
परिचय लिखनेंवग उत्साह हमारे समाजकों नहीं होगा ।
प्राचीन इतिहास न सही, जो हमारी आंखोके सामने निरन्तर गृखर
रहा है, उसे ही यदि हम बटोरकर रस मक, तो यायद इसी वटोरनमे
कुछ जवाहरपारे भी आगेकी पीढीके हाथ लग जाएँ । उसी दृष्टि से--
यीती ताहि बिसार दे आगेकी सुध लेहि
नीतिके अनुसार सस्मरण लिखनेका टरते-डरते प्रयास किया । डरते-
डरते इसलिए कि प्रथम तो में सस्मरण लिसनेकी कलासे परिचित
नही । दूमरे अत्यन्त सावधानी वरतते हुए भी यत्र-तत्र आत्म-विज्ञापनकी
गन्ध-सी आने लगी । नौसिखुआ होनेके कारण इस गन्धकों निकालमेमें
समर्थ न हो सका। तीसरे मेरा परिचय क्षेत्र भी अत्यन्त सकुचित और
सीमित था । फिर भी साहस करके दो-एकं सम्मरण, पोको भेज दिये ।
प्रकाशित होनेपर ये अनसंवरी टेढी-मेढी रेसाएँ भी अपनोको पसन्द
आईं, और उन्दीके आग्रहपर ये चन्द सस्मरण गौर लिखे जा सके ।
इन सस्मरणोंको ज्ञानपीठकी ओरसे पुस्तकाकार प्रकाशित करनेकी
चाच उरी तो मे स्वय यह् प्रयत्न अधूरा और छिछोरापन-सा मालूम
देने लमा 1 “इन्दी महानुभावोके सस्मरण क्यो प्रकाशित किये जाये,
'जमुक-अमुके महानूभावोके सस्मरण भी क्यो न प्रकाशित किये जायें ?”
यह स्वाभाविक प्रइन उठना लाचिमी था । लोकोदय-न्थमालाके विद्वान्
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