आध्यात्मिक पत्रावलि | Aadhyatmik Patravali
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
147
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)[ ११ |]
शरण मेरा आत्मा है, यही मुझे निश्यय है-व्यकहारमें पंथ
परम गुरु-खम्थ पर नित्यनेमक्रिया छरती हं । ४।। बजैके बाद
जद त्याग देती र | कितनी ही बेदना हो पर हा नहीं । आशा
सो १४ आना महीं, १ आना है। क्योंकि उनका मुझ ज्योंको
त्थों है । कोई विक्ति नहीं। धररणा भी ज्योकी स्यों है, केवल
सासकी वेदना हैं। अख कफ नहीं, ज्वर भी नहीं। बाबाजी
महाराजसे प्रणाम कहना | महाराज, खतो लीको छोडकर अन्यत्र
ग्रही ज जाना | में बाईजीको आराम होते ही एकबार आपके
दर्शन फिर करूगा। श्रीयुत् पारी अजिलोकचन्द्रजीसे तथा
छाला विश्वम्भर हुकमचन्दजी तथा खवेडूमल आदि सर्वको
दर्शन विशुद्धि | बाईके स्वास्थ्य लाभ होने पर अवश्य आऊगा |
जय तक में न ल्खि किसीक्रो न मेजना। श्रीयुक्ता दादी जी तथा
डश्क़क्लाने वाल्ती व गढीवालीसे दर्शन पिशुद्धि--
श्रीयुत् महाशय त्रिलोकचन्द्रजी योम्य दर्शन विश्ल॒ द्व ।
पत्र माया, समाचार जाने 1 जहा तक बने शान्तिके
साथ धीरताका भी अबरुस्बन करे । इमे महसी शक्ति है
कस्याणकी भूमि दं । बाह्य व्रतादिकोमे जव चकः जाम्यन्तर
आवका समाधेश न होगा शवर कष्ट ही होमि 1 बाह्यं
जीककःी रक्षा करनेफ उद्यसे जो वयाका रषयोग करते हैं
उनहोनि कयाका स्वरूपको ही गडही समका | जहा पर यह प्राणी
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