आध्यात्मिक पत्रावलि | Aadhyatmik Patravali

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[ ११ |] शरण मेरा आत्मा है, यही मुझे निश्यय है-व्यकहारमें पंथ परम गुरु-खम्थ पर नित्यनेमक्रिया छरती हं । ४।। बजैके बाद जद त्याग देती र | कितनी ही बेदना हो पर हा नहीं । आशा सो १४ आना महीं, १ आना है। क्योंकि उनका मुझ ज्योंको त्थों है । कोई विक्ति नहीं। धररणा भी ज्योकी स्यों है, केवल सासकी वेदना हैं। अख कफ नहीं, ज्वर भी नहीं। बाबाजी महाराजसे प्रणाम कहना | महाराज, खतो लीको छोडकर अन्यत्र ग्रही ज जाना | में बाईजीको आराम होते ही एकबार आपके दर्शन फिर करूगा। श्रीयुत्‌ पारी अजिलोकचन्द्रजीसे तथा छाला विश्वम्भर हुकमचन्दजी तथा खवेडूमल आदि सर्वको दर्शन विशुद्धि | बाईके स्वास्थ्य लाभ होने पर अवश्य आऊगा | जय तक में न ल्खि किसीक्रो न मेजना। श्रीयुक्ता दादी जी तथा डश्क़क्लाने वाल्ती व गढीवालीसे दर्शन पिशुद्धि-- श्रीयुत्‌ महाशय त्रिलोकचन्द्रजी योम्य दर्शन विश्ल॒ द्व । पत्र माया, समाचार जाने 1 जहा तक बने शान्तिके साथ धीरताका भी अबरुस्बन करे । इमे महसी शक्ति है कस्याणकी भूमि दं । बाह्य व्रतादिकोमे जव चकः जाम्यन्तर आवका समाधेश न होगा शवर कष्ट ही होमि 1 बाह्यं जीककःी रक्षा करनेफ उद्यसे जो वयाका रषयोग करते हैं उनहोनि कयाका स्वरूपको ही गडही समका | जहा पर यह प्राणी




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