सम्यग्दर्शन एक दृष्टि | Samyagdarshan Ek Drishti

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Samyagdarshan Ek Drishti by रघुवीर शरण दिवाकर - RAGHUVIR SHARAN DIWAKAR

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ही दिया जाय या उनकी जगह दूसरे सिद्धातों को दी जाय। ये नियम व विधान उन्हीं मान्यताओं पर खडे हों जो सत्य हों, अथवा अंतरंग या आधारभूत सत्य वास्तव में सत्य हों, विशुद्ध सत्य हो, असत्य से मिश्रित या विकृत न हो, यह सबसे प्रधान आवश्यकता है। इसके लिए कोरे बाहरी नियमों ओर विधानों को ही नहीं, आवरयक हो तो सिद्धान्तों ओर मन्तव्यों को भी, बदलना अ्रेयस्कर बल्कि अनिवायें है | खून का विकार बाहर मरहम लगाकर दूर नहीं हो सकता, उसके लिए तो आसव पीकर रक़ःशुद्धि करना ही शआ्आवश्यक है। यदि मूल में ही भूल हो तो उसे सुधारे बिना बाहरी बातों में कितना ही उलटफेर किया जाय, बह व्यथे है, ओर यदि व्यथे न्ह है त्तो अपर्याप्त तो है ही । प्रश्न- कोई सिद्धान्त भले ही सत्य न हो लेकिन उससे मनुष्य को अच्छाई व नेकी का सबक़ या कतेव्य-पालन की प्रेरणा मिल तो उसमे अनोचित्य या असत्य क्या है ९ उत्तर--असत्य बिचारों या सिद्धान्तों को सदगुणों व सदृ- वृत्तियों का प्रेरक बना देने से पहली हानि यह हे कि जो असत्व स्वमावत' ही भण्डाफोड़ या सबनाश के खतरे मे रहता है, उसके साथ उन सद्गुणो का भविष्य मी खतरे मे पडजाता है । उदा- हरणाथ, क्रयामत के दिन खुदा पापियों को सजा देगा, ओर पुर्या- त्माओं को पुरस्कृत करेगा, इस मान्यता को लेकर यदि कोई ईमानदारी, सच्चाई, बफादारी व नेकी को प्रहण करे ओर यदि कमी खुदा की कयामत तथा उसकी न्यायप्रणाली की मान्यता पर से विश्वास उठ जाय, जेसा कि उसके कल्पना या परम्परागत या सस्कार-जन्य श्रद्धा मात्र पर अवलम्बित होने के कारण बहुत सम्मव है, तब ऐसी स्थिति मे उस मान्यता के साथ सद्गुणो का सम्बन्ध ৮]




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