जैनपदसंग्रह | Jainpadsangrah

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Book Image : जैनपदसंग्रह  - Jainpadsangrah

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

Author Image Avatar

पं. दौलतराम जयपुर की तेरहपंथ शैली में एक समादृत विद्वान थे। उन्होने वि॰सं॰ १८२३ में 'पद्मपुराण' नामक हिन्दी ग्रन्थ की रचना की जो पद्मपुराण के मूलश्लोकों का यह अनुवाद है। वे आधुनिक मानक हिन्दी के आरम्भिक साहित्यकारों में गिने जाते हैं।

Read More About . Pt. Daulatram Ji

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
মলা । ९ সস সপ চল সি জল ভি শপ जोकि जबते० ॥ ই ॥ विषयचाहज्वालतं द,-ह्यो अनंत कालतें सु,-धांबुस्पात्पदांकगाह,-तें प्रशांति आई जबतें० ॥ ४ ॥ या पिन जगजालमें न, शरन तीनकालेम सं,भाल चितभजों सदीव दोल यह सुहाह । जबतें० ॥ ५॥ ८ भज ऋषिपति ऋषभे ताहि नित, नमत अमर असुरा । मनमर्थ-मथ दरसावन शिवपथ इष -रथ-च- क्षुरा ॥ भज० ॥ टेक ॥ जा प्रभु गभठमासपूवे सुर, कंरी सवणे धरा । जन्मत सुरागिर- धर युरगनयुत, हेरि पय न्हवन करा ॥ भज० ॥ १॥ नत ब्रत्यकी व्लिय देख प्रभु, তি पिराग सु थिरा । तबि देवर्षि आय नाय शिर जिनपद पुष्प धरा ॥ भज० ॥ २ ॥ केवलसमय जास वच-रंषिने, जगभरम-तिभिर हरा । घुरग- बोधचारित्रपोतं छदि, भवि भवसिधुनरा ॥ मज ` १ स्य द्रदक्ष्पो भमत अवगाहन करने । २ निना} ३ भादिवाष। अं कामदेवके मथनेबाले| ५ घोक्षपय | ६ इन्द्र | ७ भप्लर। | ८ छोकांतिकदेव < वचनकषपी सूर्मने | १० जहान |




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now