अकिंचित्कर | Ankichitkar
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
90
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)अकिचित्कर
सम्यग्दर्शन की सहिसा--
न सम्यक्त्वसमं किच्चित्, त्रेकाल्ये श्रिजगत्यपि ।
श्रेयोड्लेयद्व सिथ्यात्वसम॑ नान्यत्तन् भृतास् ॥३४।
( रत्नफरण्डक्रावकाचार )
श्राचा्यं समन्तभद्र स्वामी ने रत्नकरण्डश्रावकाचार मे
सम्यग्दशंने की महिमा सक्षेप मे इस प्रकार व्यक्त की है-तीन काल
व तीन लोक मे यदि कोई सुखप्रद वस्तु है तो वह सम्यक्त्व तथा
दु खप्रद तो मिथ्यात्व । जब हम सभी सुखाभिलाषी भ्रौर दु खभीरु है
तब हमारा प्रयास सुखप्रद वस्तुश्रो के लाम तथा दु खप्रद वस्तुओं के
प्रभाव के प्रति श्रावश्यक है ।
सुखप्रद वस्तुभ्रो के लाभ के लिए समुचित साधन श्रापेक्षित
है, क्योकि कार्य की उत्पत्ति के लिए सभी दाशैनिको ने कार्य-कारण
की व्यवस्था मानी है। उन्होने कहा-कार्य बिना कारण के उत्पन्न
न॒ही हो सकता ।२.“श्रत. हितकारी श्रौर श्रहितकारी कार्यो का
उत्पादन किन-किनि कारणोसे हो रहा है यह समना व हितकारी
कायं के प्रति उद्यम करना श्रावश्यक है । जहाँ तक समभने की बात
है वह् हमे मात्र स्वय की बुद्धि से नही समना बरिक वह् जिनेन्द्र
१ সদ) ण च कारणमन्तरेण कज्जस्सुप्पत्ती कहि पि होदि, अ्रणवर्टाणादो।
घद६पृ १६६।
“(ब) कारणेण विणा कज्जुप्पत्तिविरोहादो । घ् ७पृ ७०।
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