जैनसिद्धान्तदीपिका | Jainsiddhantdipika

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Jainsiddhantdipika by आचार्य श्री तुलसी - Aacharya Shri Tulasi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[৮২০ ] तत्सम्बन्धी भन्‍्यान्य तथयोके साथ परिपूर्ण वर्णन' हैं। तृतीय प्रकाश इन्ही का समुचित विस्तार हँ। चतुर्य प्रकाशमे कमोके रहस्यका रीर उनका जीवोके साथ सम्बन्ध व जीवों पर उनके प्रभावका वर्णन विया गया हूँ । जैन दर्शनके कर्मवादकों समझना अत्यधिक कठिन हूँ क्योकि कमके मौलिक स्वरूप और जीवो पर इसके प्रभावके सम्बन्धर्में भारतके अन्य दर्शनोके साथ इसकी समानता नहीं के वरावर है और इसकी ( जैन-कर्मवादकी ) अपनो निजी विशेषता है । में इस पुस्तक॒का अत्यधिक न्णी हूँ, जिसके पढनेंसे मेरी समझ परिमाजित हुई और मेरी उल्ज्न टूर हुई, जिसे मेरा मवतकका साहाय्यरहवितत अध्ययन दूर नही कर सका । पंचम प्रकाश अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हे। मेरो समभर्मे , হলম जो प्रचुर प्रकाश डान्डा गया हैँ, वह अनुपमेय हैं। इसमें प्रासगिक रपसे गण- स्थानो--जआत्म विकासके क्रमिक स्तरोका मी विवेचन है, जो पूर्ण रूपसे अष्टम प्रकाशमें वणित हूं । जंन-घ्ाचार-शास्त्रका तो इममे अत्यल्प स्थानम मवित पर जो कर्म-पुदगलोके वन्‍्वनसे छुटकारा पानेमें निहित ही पूर्ण उल्लेख हैं। पप्ठ और स॒प्तम प्रकाद्मर्म महाव्रतोंकी विवेचना हूँ। ये ( दोना प्रकाल) वम भौर आवारमम्बन्वी सत्‌-अमत्‌ कार्यो, जिनका आधुनिक समाज-मुघारको तथा विश्व-प्रेम-प्रवृत्त व्यक्तियोंके लिए भारी महत्त्व के स्पप्डीफरणकी दृष्टिसे अति विछक्षण हूं । श्रष्टम प्रकाशमें गुणस्थान, जिनको समझना एक चिन्तन परायणा और अध्यवसायों विद्यार्थीके लिए भी दुरूह है, वणित हे । इस विपयके परिवूर्णा ज्ञानकें छिए जैन कर्म वादके बुदत्काय मूल ग्रन्योकोी पढ़ना वपेक्षित होता हैं । परन्तु यह विपय अत्यधिक जटिल है और इन ग्रन्थोमे इसका वर्णन इतना विम्तीर्ण, म्बा गौर णाया- प्रणाखाम्य हैं कि विद्यार्थीक छिए यह बहुत सभव हं कि वह वृक्षोमे उलझ वनको भून जाय--गान्ा-ग्रयाखाश्रोमे पड़ मूछसे दुर चछा जाय! जैन दर्शनके एक निष्पक्ष विद्यार्यीके नाते में यह मानता हें कि इस जटिल বিনয়




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