जिन्दगी की लहरें | Jindagi Ki Lahre

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Book Image : जिन्दगी की लहरें   - Jindagi Ki Lahre

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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जिन्दगी को लहरें ५ उधर देखा, पर हार का कही पतान लगा) मित्र को क्या उत्तर देना | उसे यह सूझ ही नही रहा था। ह प्रातः होते ही वे दोनों एक प्रसिद्ध जौहरी की दुकान पर पहुँचे । मित्र जेसा ही हार देख कर उन्होने उसकी कीमत पूछी । जौहरी ने कहा--पाँच लाख ! पाच लाख कर्हा से लाना ! उस समय उसके पास पाचि हजार भी नही थे । मित्र को हार लौटाना भी श्रावद्यक था । रन्त मे उन्होने जौहरी से यह समता किया किं चालीस वपं तक हम आपके यहा नोकरी कर इसका भरपाया कर देंगे । जीहरी इस प्रकार प्रसन्न हो गया । उन्होने हार लेजा कर मित्र को दे दिया । उसके वहावे दोनो नौकरी करते, श्रौर वह जो उन्हे बासी लूखी-सूखी रोटी के ढुकड़े देता वह खाते तथा फटे-पुराने चीघड़ें पहनते । चालीस वर्ष का समय पूरा हुआ । वहा से छुट्टी लेकर वे श्रपने घर श्रा रहे थे कि मार्ग में वही पुराना मित्र मिल गया जिसंके पास से उन्होने'हार लिया था। वार्तालाप के प्रसंग मे उन्होने उस दिन की बात॑ मित्र' को बताई श्रौर उसके लिए उन्हें कितनी कीमत चुकानी पडी वह भी बताई । उनकी बात सुन कर मित्र ने कहा भाई. ! गजब हो गया, वह हार: जो तुम मेरे पास से लाये थें वह असली नही किन्तु नकली मोतियौं का था, कल्चर का था | श्रौर उसकी कीमत दस.-रुपये थे । दस रुपये के हार को पाँच लाख का समफ्त कर चॉलीस वर्ष बरबाद किये । बीस वै्ष की उम्र मे नौकरी की और साठ व के ही गये। सारी: जवानी লচ্ত




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