तीर्थंकर चरित्र भाग - 3 | Thirthankar Charitr Bhag - 3
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
12 MB
कुल पष्ठ :
430
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)मुनिराज चित्र-सभूति का अनशन ५
[१
करना आपके लिये उचित कैसे हो सकता है ? सन्तं तो क्षमा के सागर दाते दँ ! आप भी क्षमा धारण
कर के सभी जीवों को अभयदान दीजिये ।!' ^ ५
राजा की प्रार्थना व्यर्थ गई )तब निकट ही ध्यानस्थ रहे हए चित्रमुनि, ध्यान पाल कर सभूति मुनि
के पास आये मौर मधुर वचनो से समझा कर उनका क्रोध शान्त किया' । तेजोलेश्या शात्त हो गई ।
सभी लाग प्रसन्नता पूर्वक वन्दना-नमस्कार कर के स्वस्थाने लौट गये ! ~
मुनिराज चित्र-संभूति का अनशन +-- 5
तजोलेश्या छोड कर लोगो को परितप्त करने का सभूति मुनिजी को भारी पश्चात्ताप हुआ । दोनों
অন্থু मुनिवरों ने सोचा - ''घिक्कार है इस शरीर और इसमें रही हुई जठराग्नि को कि जिसे शान्त करने
के लिए आहार की आवश्यकता होती है और आहार याचने के लिए नगर में जाना पडता है जिससे
ऐसे निमित्त खडे होते हैं । यदि आहार फे लिए नगर में जाने की आवश्यकता नहीं होती, तो न तो यह
उपद्रव होता और न मुझे दोष सेवन करना पडता । इसलिए अब जीवनभर के लिए आहार का त्याग
करना ही श्रेयस्कर है ।'' दोनों मुनिवरों ने सलेखनापूर्वक अनशन कर लिया और धर्मभाव में रमण
करने लगे । 1
राज्यभवन में प्रवेश कर के महाराजाधिराज ने नगर-रक्षक से कहा - जिस अधम ने तपस्वी
सन्त को अकारण उपद्रव किया, उसे शीघ्र हौ पकड कर मेरे सामने उपस्थित करो । उस नराधम को मैं
कठोर दण्ड दूंगा ।'” नगर-रक्षक ने पता लगा कर नमूची प्रधान को पकडा ओर बध कर नरेश के
समक्ष खडा कर दिया । महाराजाधिराज ने नमूची से कहा.
र अधमाधम । तु राज्य का प्रधान हो कर भी इतना दुष्ट है कि तपस्वी महात्मा को - जिनके
चरणों मे इन्द्रा के मुकुट झुकते हैँ ओर जो परम वन्दनीय ह - तूने अकारण हौ पिटवा कर् निकलवा
दिया ? योल, यह मष्टापाप क्या किया तेने 91?
नमूची क्या बोले ? यदि वह कुछ झूठा यचाव करे, तो भी उसकी कौन माने ? तपस्थी भुनिराज
की तप-शक्ति का प्रभाव तो सारा नगर देख ही चुका है । वह मौन ही खडा रहा । राजेन्द्र ने आज्ञा
दी -
“इस दुष्ट को इस बन्दी दशा में ही सारे नगर में घुमाओ और उद्घोषणा करो कि इस अधम ने
तपस्वी महात्मा को पीडित किया है ।इससे महाराजाधिराज ने इसे प्रधानमन्त्री के उच्च पद से गिरा कर
दण्डित किया है ।'!
नमूची को घन्दी दशा यें नगर में घुमा कर उद्यान मे महात्माओ के पास लाया गया 1 महाराजा
सनत्कुमार ने महात्माओं से कहा -
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