इन्साफ - संग्रह भाग - 2 | Insaf - Sangrah Bhag - 2
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
82
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about मुंशी देवीप्रसाद मुंसिफ़ -Munshi Deviprasad Munsif
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)दूसरा भाग | ७
ने यद् ख़बर सुनते ही ज़यमल के मार डाला और राना के काप से डर कर
चद॒नेर से निकल जाने की तैयारी की ; परन्तु न्यायवान् राना का जव इस
चारदात की रिपे।ट पड ची ते। उसने कहा कि जयमल ने अपने अपराध की
सज़ा ছাই । वह क्यों कु आरी कन्या के देखने के। एक राजपूत के राघले में
गया था। राव सुरतान से कहला भेज्ञा कि तुम बेखटके बदनेार में बेठे
रहे। | क़दूर जयमल का ही था । तुम्दारा कुछ क़खूर नहों है। तुम अपनी
लड़की खुशी से उसके दे जे तुम्हारा पण पूरा करे |
इस न्याय से राव सुरतान की दिलूजमई दवा गई श्रार छाक में भी
राना रावमल की प्रशंसा हुई कि उसने घेटे का दाघहण. दुख ते सह छिया
परन्तु इन्साफ केा द्वाथ से नहीं जाने दिया ।
राना राजसिंह ।
सवत् १७१४ म जव उदयपुर के मदाराना राजसिंह ने वादशाही मुल्क
पर चढ़ाई करके कई शहर और कृसवे ल्टूटे थे, ते मालपुरे की छूट में कुछ
मुखरूमान भी शामिल हे गये थे। परन्तु राजपूतें ने त्यूट का माल उनसे
छोन किया और उनके लशकर से निकाल दि्या। उन्होंने महाराना से पुकार
की और इन्लाफ़ चाहा | महाराना ने उनकी सब हक़ीक़त सुन कर राज-
पूते क्ता बुलाया ग्रार कहा कि जब ये छोग अपने लशक्र के साथ है ते।
लूट में इनका भी हक़ है ग्रेर जे। इनके करम-भाग में की ल्यूट मिली है, चह
इन्हीं के पास रहनी चाहिए। इस तरद से राजपृतें का सममा कर चह
माल मुसलमानों के दिला दिया और न्याय करने में हिंदू-सुसलमानों का
राग-ढ)ष कुछ अपने मनम नहीं रक्ला ।
महाराना सरूपसिंह ।
(१)
एक रेबारी एक ढे।छन के उदयपुर में उड़ा छाया ओर राज्य में नोकर
दाकर रानाजी तक जा पहुं चा, क्योंकि बह ऊँट ,खूब फिराना जानता था |,
: पीछे से ढे।ली भरी अपनी ढे।छन के दूं ढ़ता हू ढ़ता आया ग्रैर उसके रेबारी
के पास देख कर दरबार में पुकारा | महाराना ने देने के बुला कर पूछा ते
रेवारी ने कदा कि में इसके नहों जानता। औरत भी इसकी नहीं, मेरी है ।
ग्रेरत ने भी कह दिया कि पं ढे।लन नहों, रेबारिन हूँ । मैं इस रेबारी की बह
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