कुंदकुंद भारती | Kund Kund Bharati
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
18 MB
कुल पष्ठ :
387
श्रेणी :
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No Information available about पं पन्नालाल जैन साहित्याचार्य - Pt. Pannalal Jain Sahityachary
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)प्रस्ताकता/7
भौर उपजाति छा भौ परवोग किया कै, एक ढी कन्द को पढ़ते-पढते बीच में यदि विभिन्न अन्द आ जाता है तो
उससे पाठक को एक विशेष प्रकार का हर्षं होता है । कुन्दकुन्द स्वामी के कुछ अनुष्टुप हन््दों का नमना देखिये ।
ममतति परिवज्जामि
आलक्षण चे मे आदा अक्येखाहं दौसरे।। ५७।। भावप्राभृते
एणो मे सस्यदो अप्पा णाणदयणलक्खणो ।
सैसा मे बाहिरा मा सत्वे संजोगलक्येणा ।/ ४८।। भादग्रामृत
सुण भाविदं णाण, दुहे जादे विणस्यदि ।
कड़ा जहाबलं जोई अप्या दुक्खेहिं भाक्ए।। ६२।। मोक्षपरमृत
विरदी सब्वसावज्जे तिगुत्ती पिहिर्दिदिभो।
तस्य यामाहगं ठाइ इदि केवलिसयाखणे || 8২811
जो समो स्वभू शवर तसे ग ।
तस्स सामा ठाड़ डदि केवलिसासणे ।/ १२६ ।। निवमसार
वैया उ पवी अट्ठ उप्यज्जड् किणस्यह ।
पडी वि चेवयट्ठ उप्यज्जह विणस्यइ ।। ३१२ ।
एवं बधी उ दुण्ह वि अण्णोण्णप्पव्यया हवे।
अप्पणो एकवीर व संसारो तेण जावए ।। ३९० ।। समयग्रामृत
एक उपजाति का नमूना देखिए -
णिद्रस्य णिद्धेण दुराहिएणु लुक्सस्स শুক दुराडिवेण ।
णिद्धस्स लुकखेण हकेदि कंधी जहण्णवज्जे विसमे समे का ।/ प्रक्वनसार
अलंकारों की पुट भी कुन्दकुन्द स्वागी ने वक्षास्थान दी है। जैसे अपग्रस्तुत प्रशा कय एक उदाहरण देशे -
7 मृयह पयडि अभव्वो सुट वि आयण्णिऊण जिणधम्मं |
गुडदुद्ध पि पिवेता ण पण्णदा णिव्विसा होति।। ९३७।। मावप्रामृते
थोड़े ये हेर-फेर के साथ वह गाथी समयग्रामृत में आई है । उपमालकार की ढटा देखिये -
जह़ तारबाण चंदों मबराओ मवउलाण सव्वार्ण।
अहिओ तह सम्मत्तों रिसिसाववदुविहधम्माणं।। १४३ ।1।
जह फणिराओं रेहड़ फ़णमणिमाणिक्ककिरणविप्फुरिओ ।
तह विमलदेसणधरो जिषमत्ती पकयणो जीवो 1 / ९४४ ।।
ज तारयाण सिव ससहराङगव खमडले विनते ।
मादिव तह व्यविमल जिषलिंग॑ द॑सगविसुद्ध ।/ १४४ //
जह सलिलेण ग लिप्पड़ कमलिणिपत्त सहावपव्डीए ।
तह भावेण थ लिप्पड कसावबिसए हि सुप्पुरिसो ।। १४३ 11 मावप्रायृत
स्पालंकार की बहार देखिये - ৪
जिषक्रबरणुरुड ध्माति ज परममत्तिराकेण ।
तै अम्मकषेल्लिमूलं खणाति वरमाकषसत्येण । । ९४० ।
तै धीर वीर पुरिसा खमदमखगेण विष्फुरतेण।
दुज्जवपक्लबलुछरकयावमडणिज्जिया जेहि / / ९५५।।
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