कुंदकुंद भारती | Kund Kund Bharati

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Kund Kund Bharati  by डॉ॰ पन्नालाल साहित्याचार्य - Dr. Pannalal sahityachary

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रस्ताकता/7 भौर उपजाति छा भौ परवोग किया कै, एक ढी कन्द को पढ़ते-पढते बीच में यदि विभिन्‍न अन्द आ जाता है तो उससे पाठक को एक विशेष प्रकार का हर्षं होता है । कुन्दकुन्द स्वामी के कुछ अनुष्टुप हन्‍्दों का नमना देखिये । ममतति परिवज्जामि आलक्षण चे मे आदा अक्येखाहं दौसरे।। ५७।। भावप्राभृते एणो मे सस्यदो अप्पा णाणदयणलक्खणो । सैसा मे बाहिरा मा सत्वे संजोगलक्येणा ।/ ४८।। भादग्रामृत सुण भाविदं णाण, दुहे जादे विणस्यदि । कड़ा जहाबलं जोई अप्या दुक्खेहिं भाक्ए।। ६२।। मोक्षपरमृत विरदी सब्वसावज्जे तिगुत्ती पिहिर्दिदिभो। तस्य यामाहगं ठाइ इदि केवलिसयाखणे || 8২811 जो समो स्वभू शवर तसे ग । तस्स सामा ठाड़ डदि केवलिसासणे ।/ १२६ ।। निवमसार वैया उ पवी अट्ठ उप्यज्जड्‌ किणस्यह । पडी वि चेवयट्ठ उप्यज्जह विणस्यइ ।। ३१२ । एवं बधी उ दुण्ह वि अण्णोण्णप्पव्यया हवे। अप्पणो एकवीर व संसारो तेण जावए ।। ३९० ।। समयग्रामृत एक उपजाति का नमूना देखिए - णिद्रस्य णिद्धेण दुराहिएणु लुक्सस्स শুক दुराडिवेण । णिद्धस्स लुकखेण हकेदि कंधी जहण्णवज्जे विसमे समे का ।/ प्रक्वनसार अलंकारों की पुट भी कुन्दकुन्द स्वागी ने वक्षास्थान दी है। जैसे अपग्रस्तुत प्रशा कय एक उदाहरण देशे - 7 मृयह पयडि अभव्वो सुट वि आयण्णिऊण जिणधम्मं | गुडदुद्ध पि पिवेता ण पण्णदा णिव्विसा होति।। ९३७।। मावप्रामृते थोड़े ये हेर-फेर के साथ वह गाथी समयग्रामृत में आई है । उपमालकार की ढटा देखिये - जह़ तारबाण चंदों मबराओ मवउलाण सव्वार्ण। अहिओ तह सम्मत्तों रिसिसाववदुविहधम्माणं।। १४३ ।1। जह फणिराओं रेहड़ फ़णमणिमाणिक्ककिरणविप्फुरिओ । तह विमलदेसणधरो जिषमत्ती पकयणो जीवो 1 / ९४४ ।। ज तारयाण सिव ससहराङगव खमडले विनते । मादिव तह व्यविमल जिषलिंग॑ द॑सगविसुद्ध ।/ १४४ // जह सलिलेण ग लिप्पड़ कमलिणिपत्त सहावपव्डीए । तह भावेण थ लिप्पड कसावबिसए हि सुप्पुरिसो ।। १४३ 11 मावप्रायृत स्पालंकार की बहार देखिये - ৪ जिषक्रबरणुरुड ध्माति ज परममत्तिराकेण । तै अम्मकषेल्लिमूलं खणाति वरमाकषसत्येण । । ९४० । तै धीर वीर पुरिसा खमदमखगेण विष्फुरतेण। दुज्जवपक्लबलुछरकयावमडणिज्जिया जेहि / / ९५५।।




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