विषय : नर - नारी | Vishya Narnari
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
336
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)विषय : नर-नारी ८; ५
पोते-पोतियों से थोडी देर देल न तेने पर कांति वायू को चैन नहीं
मिलता आर उनका खाना नरीं पचता !
साहित्य-गोष्ठो के सिलसिले में में जबलपुर गया था। बस, एक
दिन रहकर लौट आएऊँगा ऐसी इच्छा थी । लेकिन वैसा नहों हो सका ।
कांति चट्टोपाध्याय के स्नेह के कारण मुझे रुक जाना पड़ा । फिर उन
दिनों उनकी भी छुट्टी थी । कचहरी बंद थी ।
सचेरे से हम गप लड़ाने लगते । बार-बार चाय आती । उसके बाद
अनेक व्यंजनों के साथ स्वादिप्ठ भोजन का संदुपयोग किया जाता 1
बाजार की सबसे अच्छी मछली और सबसे अच्छी सब्जियाँ मेरे लिए
आतों। मेरे लिए कांति बाबू बड़ा इंतजाम करते |
एक दिन वातों ही बातों में मैंने पुछा--यहाँ आप लोगों का कोई
क्लब नहीं है ?
कांति बाबू में कहा--क्लब क्यों नहीं हैं? यह तो कलवों का ही
जमाना है जनाव ! मैं भी एक क्लब का मेम्बर हूँ। लेकिन नियम से
बहाँ जा नहीं पाता । मुवक्किल से मुकदमे कौ वात करते-करते रोज
सात के वारह वज जते है ।
--क्या उन कलवों में जुआ नहों होता ?
काति वादू ने कहा--जुआ क्यों नहीं होगा ? आडंनेस फैक्ट्री के
चलव में जैसा शराब का इंतजाम है, वैसा ताश खेलने का । लेकिन मुझे
इन दोनों चीजों से मजा नहीं मिलता । हाँ, कभी-कभी वहाँ चला जाता
हूँ, लेकिन ज्यादा देर नहीं रहता--
यह सुनकर मैंने अपने मन की इच्छा उनके आगे प्रकट की और
कहा--मुझे जुआड़ी देखने की बड़ी इच्छा है।
कांति चट्टोपाध्याय ने आश्चर्य से कहा--जुआड़ी देखेंगे ? अरे, वहाँ
बहुत-से जुआड़ी मिल जायेंगे । जबलपुर में जुआड़ियों की कमी नहीं है ।
जो लोग फैक्ट्री में काम करते हैं, उनके पास पैसे की कमी नहीं है । एक
वार ताश लेकर बैठ जाने पर उनको समय का हिसाव भी नहीं रहता ।
फिर जरा रुककर बोले--आज शाम को चलेंगे ?
मैंने कहा--मुझे क्या एतराज हो सकता है ? चलिए, एक साथ चला
जाय । क्या जाप भी उनके साथ जुआ खेलेंगे १
. कांति बाबू ने कहा--जी नहीं, में ताश नहीं खेलता । मेरा तो यह
हाल है कि मैं ताश के पत्ते ही नहीं पहचानता--
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