कालिदास और भवभूति | Kalidas Aur Bhavabuti

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Kalidas Aur Bhavabuti by द्विजेन्द्रलाल राय - Dvijendralal Ray

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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७ वास्तवमें ये शब्द द्विजेन्द्रे उत्कट और छुट्ट धर्मगारवकों प्रकट करते हूँ । सीतात्यागके वरिम राम पर द्विजेद्का अक्षम्य क्रोध है । यह इस प्म कर जगह प्रकट हुआ है। उन्होंने तेज स्वरम रमक प्रति अवज्ञा प्रकट की है ओर रामके दोष ढकनेझ जो प्रयल कविने किया है उस्ते असस्तोष दृष्टिमे देखा हे । साथ ही सीताकी हिमायतर्मे उन्होंने अत्यन्त कहृग शब्दोंमें अपीड भी को ६। नतु अन्त्मे-जहा वे दोनों पुस्तकोके नायकनायक्राओंका मेल कराते हैं बदा- निर्भाकतापूर्वक साफ कहते हैं कि-- ८ अभिनज्ञान-शकुन्तठके नायक नायिका यथार्थमें कामुक और कामुक्री ईं, और उत्तरचरितके नायक नायिका देव देवी हैं । ” द्विजेन्द्रका यह निय उनका अपूर्वं चरित्र-परीक्षण-कौशल प्रकट करता हे । दुष्यग्तके चरित्रक्रो द्विजेद् बिलकुल साथारण राजाओं जैसा मानते हूं; पर कालिदासने उसे जसा खीचतान कर सुधारा दै उसको प्रशंसा किये बिना भी उनसे रहा नहीं गया है । वे कहते हैं-- ५ यह नाटक दुष्यन्त और शकुन्तलाके प्रणयकी कहानी है, शिव पा्रैतीका ब्याह नहीं है। इसी कारण ऋषियोंक्रे प्रति विखासबातकृता ओर शकुन्तलाके साथ हम्पटताका व्यवहार सभी कुछ कालिदासको रखना पड़ा। और यह सब रख कर भी चरितको महत्‌ वनाया। चन्द्रको सुन्दर तो बनाया, पर उसका कलंक नहीं पोल । ” शकुन्ता चरित्रका पूरा पूरा अनुशीलन करनेके पश्चात्‌ द्विजेन्रकों यही कहना पढ़ा है कि वह एक साधारण ष्ठो हे । उसमे को$ विशेषता थी तो इतनी ही कि तथोवनरके साथ उप्तकी एश्रान्त घनिष्ता थी। वे कहते ই“ कालि- दासको शक्ुन्तला लेह, सोहादे, तेज, करगा आदि भावोंकी एक मनोहर संष्टि देत्ति प्र भी उनका कना दै कि “ये सव भाव प्रवय गृदष्यङ कन्याम होते ही हैं। इनमें कोई তীন্ধীঘ वात नदीं ३ । '› अन्तम वे स्वय यह प्रसन उठते द ক্ষি जव नाय नायिका दोनोभ को$ विशेषता नहीं, तब कवैने उन्हें चुना क्‍यों ? और यह रचना क्‍यों के अल मानी गई! इसका उत्तर द्विजेद्धने जो दिया है वह यथार्थ है। वे हईं--“दोनोंके चरित्रका म्ाहात्म्य उनके उत्थान और पतनमें है। ”? उनके




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