गोम्मटसार | Gommatasar
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
156
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)९६
एकद्वित्रिचखचाष्ट द्वादश खषोडश रागाष्टचत्वारिंशचतुःषष्टिम् ।
संस्थाप्य प्रमादस्थाने नष्टोद्दिष्ट च जानीहि त्रिस्थाने ॥ ४४ ॥
अथाप्रमत्तगुणस्थानखरूप ग्ररूपयति,---
संजलणणोकसायाणुद्ओ मंदो जदा तदा होदि।
अपमत्तगुणो तेण य अपमत्तों संजदो होदि ॥ ४५ ॥
संज्वछननोकषायाणामुद्यों सन््दो यद। तदा भवति ।
अप्रसत्तगुणस्तेन च अप्रमत्त: सयतो भवति ॥ ४५ ॥
अथ सस्थानाप्रमत्ततसयतखरूप निरूपयति,--
णटासेसपमादो वययणसीलेलिमडिञी णाणी ।
अणुबसमओ अखबओ झाणणिलीणो हु अपमत्तो ४६९
नष्टाशेषप्रमादो त्रतगुणशीलावलिसण्डितो ज्ञानी ।
अलुपरामक अक्षपको ध्याननिलीनो हि अप्रमत्त. ॥ ४६ ॥
अथ सातिशयाप्रमत्तखरूपमाह;
इगिवीसमोहरलबणुबसमणणिमित्ताणि तिकरणाणि
तहिं | पढस अधापवत्त करणं तु करेदि अपमत्तो ॥४७॥
एकविंशतिमोहक्षपणोपशमननिमित्तानि त्रिकरणानि तस्मिन् |
प्रथमसध:प्रवृत्ते करणं तु करोति अप्रमत्त:॥ ४७ ॥
अथाधप्रवृत्ततरणस्र निरुक्तिसिद्ध लक्षण कथयति,---
जम्हा उबरिसभावा हेडिसमाचेहिं सरिसगा होंति। `
লা ঘন करणं अधापचत्तोत्ति णिदिडं ॥ ४८ ॥
१ राग ॒इ्यक्षरद्येन दार्चिशत्सघ्या योध्या कपरपयपुरस्थेति वक््यमाण-
टिप्पणीगत्तनियमेनाक्षराणा सल्यावोधकत्वनियमात् । २ अन्तिमभेदद्दयसे-
कैकखल्याकत्वेन गुणितेपि पूरवैसस्याया अविशेषात् त्रीण्येव स्थानानि गृदीतानि
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