भारतीय विध्या | Bhartiya Vidhya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अंक १ ] किंचित्‌ प्रात्ताविक [ও अंगका प्रारंभ किया था और तमीसे इसके विकास और विस्तारका सतत खप्त देखा करते थे । गत वर्षमें सेठजी श्री मुंगलारुजी के अकल्पित और अमोध दानने इनके इस खप्तको सफल किया और इस मूलनिधिके आधार पर, भारतकी ग्राचीन विद्याका आधुनिक वेज्ञानिक पद्धतिसे अध्ययन, अन्वे- षण, अवरोकन ओर आलोचन आदि काथ करनेके साधन निमित्त इस भारतीय विद्या भवन का इन्होंने यह सुसंघदित ग्रतिष्टान किया । রং श्रीमान्‌ मुशीजी भारतीय बिद्याके एक उत्कृष्ट प्रेमी, गुजराती भाषाके रूब्घ- प्रतिष्ठ ठेखक, जातीय संस्कारिता ओर अस्मिताके उत्कट प्रचारक, अग्रगामी रा्टमक्त, प्रखर प्रतिभावान्‌ न्यायविध ओर अतिकुराठ कार्यकर है । इन्हींके एकमात्र अथक परिश्रम, अदम्य उत्साह ओर व्यापक प्रमावसे इस संस्थाका ऐसा द्दमूर यह प्रादुर्माव हभ है ओर आशा है कि निकट मविष्यमे, ब॑बई नगरमे, यह अपने विषयकी एक सुप्रतिष्ठित ओर घुन्यवसित विस्लाल ्ञानप्रपा बनेगी । ¢ 3 यों तों इस विद्या भवनकी पुण्यप्रतिष्ठा करनेमे अनेक विद्याप्रेमी सजनों ओर सदृगृहस्थने, उचित धनदानादि द्वारा ग्रशंसनीय सहयोगिता और सहानु- भूति प्रदान की है और कर रहे हैं-और एतदर्थं भवन इन सबका पूरण कृतज्ञताके साथ सदैव उपकृत बना रहेगा। पर इन सबमें, भवनके जन्म लेनेमें जिनका दान सबसे प्रधान और प्रथम निमित्तमूत हुआ है और जो जो दान भवनका एक अक्षयनिधि समान है - उस दानके निष्काम और निरभिमान दाता श्रीमान्‌ सेठ सुगालालजी गोएनका अनेकराः अभिनन्दनीय ओर अभिवादनीय ই | सेठ मुंगाखाख्जी जैसे मूक- ्रकृतिके महादानी देरादुरैभ पुरूष होते हैं | राष्ट्रकी उन्नतिके लिये ८-९ लाख जितने रूपयोंका भारी दान दे कर भी, इन्होंने न कभी किसी प्रकारके नाम पानेकी इच्छा की और न कभी किसी प्रकारके मान पानेकी अमिलाषा की | सेठजीका यह विद्या्रेम इन्हें उसी अमृतकी प्राप्ति करानेवाला बनो, जिसका निदर्शन हमने ऊपरके कुछ वाक्योंमें कराया है |




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