खादी - मीमांसा | Khadi - Mimansa
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
17 MB
कुल पष्ठ :
310
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)खादी-मीमांसा
४ ९१६
खादी ओर भारतीय संस्कृति
जब द्रव्य को तृष्णा की अपेक्षा चेतन्यमय मानबसृष्टि का कल्याण
साधन करना, इस प्रकार की ही समाज-रचना होना जिसमें कि सम्पत्ति
का समान बंटवारा हो, श्रामोद-प्रमोद की प्रवृत्ति कम करके बन्धु-भावना
का विकास करने की श्रोर श्रधिक ध्यान देना, श्रौद्योगिक प्रतियोगिता पर
प्रतिबम्ध लगाकर पारस्परिक व्यवहार सहयोग द्वारा करने की प्रव॒त्ति
रखना, द्रष्य साध्य नहीं साधन हे, इस भावना ते श्राचरण करना, श्रौर स्वार्थ
के लिए अविराम दोड़-धूप करने में सुख न मानना, यही भारत का
स्वभाव है ।' - राधाकमल मुकर्जी
मनुष्य और राष्ट्र इनमें ग्रनेक बार एक प्रकार का साम्य होता है ।
जिस तरह प्रत्येक मनुष्य के स्वभाव में एकाध विशिष्ट गुण की झलक प्रमु-
खता के साथ दिखाई पड़ती है, उसी तरह प्रत्येक राष्ट्र की भ्रपनी कुछ-
न-कुछ विशिष्टता होती है । संसार के मौजूदा प्रमुख राष्ट्रों की भोर इस
दृष्टि से देखने पर हमें इंग्लेण्ड की नाविकता श्रथवा जहाज़रानी, जमेनी की
सेनिकता, फ्रांस की ललितकलाभिरुचि, अमेरिका की उद्यमशीलता और
हिन्दुस्तान की श्राध्यात्मिकता इत्यादि सदगुण प्रमुखता से विकसित हुए
दिखाई देते हें ।
हिन्दुस्तान प्रध्यात्म-प्रधान राष्ट्र हें। इसका प्रर्थ यह है कि वह रहस्य-
ग्राही भौर दूरदर्शी राष्ट्र हैँ । वह क्षणभंग्र भ्रौर शाश्वत, देह और भ्रात्मा,
छिलका प्रथवा चोकर ओर सत्त्व का भेद पहचाननेवाला राष्ट्र हें। ग्रीक,
रोमन, बेबिशोनियन, मेसिडोनियन इत्यादि राष्ट्र उदय हुए भौर भ्रस्तहो
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४५९-६१ भौर ४६५-६७
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