उपदेश शुद्ध सार | Upadesh Suddh Saar
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
14 MB
कुल पष्ठ :
468
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)श्रीमती इस्त्ररतो बहू, भोगायाई, रस्तूरी आई समेंया ट्रस्ट
सागर (म० प्र०)
संक्षिप्त-परिचय
वानका महत्व
श्री गुर महाराजके अनुयायी भक्तोकी श्रेणीमे सागर निवासी श्रीमान्
सेठ नन्हेंलालजो समैयाका भी महत्त्वपूर्ण स्थान था। इनका कपड़ेका
व्यापार था । ये समाजसेवी, उदार हृदय एवं धर्मात्मा व्यक्ति थे। इनकी:
मात्र ४ सन््तानें थीं--(२ पुत्र एवं २ पुत्रियाँ) ।
पत्र-श्रीमान् सेठ गुरुप्रसाद जी एवं श्रीमान् सेठ मूलचन्द जी ।
पुत्रियाँ--श्रीमती कस्तूरी बाई एवं श्रीमती रेबती बाई ।
इस श्रद्धालु परिवारकी हमेशा धामिक एवं सामाजिक कार्योमिं खचि
रहा करती थी। इनके शुभ भावोंका ही फल है कि इन्होंने करीबन २६
किलो चाँदी और करीबन ५ तोला सोनेके द्वारा श्री विमान जीका निर्माण
कराके श्रीदेव तारणतरण जेन चेत्यालय जी, सागरकों सादर समपित
किया था | इस आदर्श दानके उपलक्षमें समाजने इन्हें सेठकी पदवीसे
अलंकृत किया था ।
सन् १९३५ के पहले ही इन तीनों धर्ममना श्रद्धालु आत्माओंका:
(पिता एवं पुत्रोंका) स्वर्गवास हो गया था।
जनवरी, सन् १९३६ में इनकी धर्म श्रद्धालु धर्मपत्नियों (श्रीमती
इन्द्रानी बहू, श्रीमती भोगाबाई एवं श्रीमती कस्त्रीबाई समेया) ने
अपनी चल-अचल सम्पत्तिके द्वारा एक धाभिक ट्रस्ट निर्माण करानेका
निदचय किया था । इनकी भावना थी कि ट्रस्टकी आमदनीकों धाभिक
एवं सामाजिक कार्याँमें ही खर्च किया जावे। यह क्रम गत ५५ वर्षों से
सुव्यवस्थित ढंगसे चल रहा है, जो दानकी महृत्ताका उत्कृष्ट उदा-
हरण है।
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