उपदेश शुद्ध सार | Upadesh Suddh Saar

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Upadesh Suddh Saar by ब्रह्मचारी सीतलप्रसाद जी - Brahmchari Seetalprasad Ji

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्रीमती इस्त्ररतो बहू, भोगायाई, रस्तूरी आई समेंया ट्रस्ट सागर (म० प्र०) संक्षिप्त-परिचय वानका महत्व श्री गुर महाराजके अनुयायी भक्तोकी श्रेणीमे सागर निवासी श्रीमान्‌ सेठ नन्हेंलालजो समैयाका भी महत्त्वपूर्ण स्थान था। इनका कपड़ेका व्यापार था । ये समाजसेवी, उदार हृदय एवं धर्मात्मा व्यक्ति थे। इनकी: मात्र ४ सन्‍्तानें थीं--(२ पुत्र एवं २ पुत्रियाँ) । पत्र-श्रीमान्‌ सेठ गुरुप्रसाद जी एवं श्रीमान्‌ सेठ मूलचन्द जी । पुत्रियाँ--श्रीमती कस्तूरी बाई एवं श्रीमती रेबती बाई । इस श्रद्धालु परिवारकी हमेशा धामिक एवं सामाजिक कार्योमिं खचि रहा करती थी। इनके शुभ भावोंका ही फल है कि इन्होंने करीबन २६ किलो चाँदी और करीबन ५ तोला सोनेके द्वारा श्री विमान जीका निर्माण कराके श्रीदेव तारणतरण जेन चेत्यालय जी, सागरकों सादर समपित किया था | इस आदर्श दानके उपलक्षमें समाजने इन्हें सेठकी पदवीसे अलंकृत किया था । सन्‌ १९३५ के पहले ही इन तीनों धर्ममना श्रद्धालु आत्माओंका: (पिता एवं पुत्रोंका) स्वर्गवास हो गया था। जनवरी, सन्‌ १९३६ में इनकी धर्म श्रद्धालु धर्मपत्नियों (श्रीमती इन्द्रानी बहू, श्रीमती भोगाबाई एवं श्रीमती कस्त्रीबाई समेया) ने अपनी चल-अचल सम्पत्तिके द्वारा एक धाभिक ट्रस्ट निर्माण करानेका निदचय किया था । इनकी भावना थी कि ट्रस्टकी आमदनीकों धाभिक एवं सामाजिक कार्याँमें ही खर्च किया जावे। यह क्रम गत ५५ वर्षों से सुव्यवस्थित ढंगसे चल रहा है, जो दानकी महृत्ताका उत्कृष्ट उदा- हरण है।




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